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राम के बांसी नदी का अस्तीत्व खतरे में


टाइम्स आफ कुशीनगर व्यूरो
कुशीनगर । उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से होकर विहार प्रान्त में प्रवेश करने वाली राम के बांसी नदी का अस्तीत्व खतरे में है। एक दशक पूर्व तक स्वच्छ, निर्मल, कल-कल बहती यह नदी आज प्रदूषण की गिरफ्त में आकर जहरीली बन गई है।
नदी के महत्व को सौ काशी और एक बांसी की लोकोक्ति से समझा जा सकता है। बूजुर्ग बताते है कि  भगवान श्रीराम ने मिथिला जाते समय विश्वामित्र ऋषि और अपने भाई लक्ष्मण के साथ बासी नदी के तट पर विश्राम किया था।
बांसी नदी 

त्रेता युगीन पौराणिक महत्व की यह नदी संबंधित क्षेत्र के लोगों के लिए जीवनदायिनी है। माघ माह में स्नान के अवसर पर मोक्ष प्राप्ति के लिए इस नदी में लाखों लोग डुबकी लगाते हैं। लेकिन अब यह मैली हो गयी है। अब इसका पानी विषैला होता जा रहा है। जरूरत है एक ऐसे भागीरथ की जो इस नदी को पुनर्जीवन देने के लिए तप करे।
ज्ञातव्य हो कि कि नेपाल स्थित हिमालय की पहाडि़यों से निकली बासी नदी पिपरा-पिपरासी, मधुबनी, पडरौना के खिरकिया स्थान होते हुए सेवरही के शिवाघाट से आगे पिपराघाट में नारायणी में जाकर मिल जाती है। यह करीब 100 किमी की यात्रा करते हुए यह नदी सैकड़ों गांवों को अपने जल से प्रभावित करती रहती है।
इसके जल को सिंचाई के अतिरिक्त जीवों के प्यास बुझाने के काम में लिया जाता है। यही नही विभिन्न जलीय जंतुओं का रह-बसर भी है। कभी 200 मीटर की चैड़ाई वाले इस नदी का पाट सिकुड़ने लगा है। अब मात्र 50 मीटर में ही रह गया है।
नदी को सबसे ज्यादा नुकसान पडरौना व सेवरही के शहरी इलाके के सीवरेज में मलजल के बहाव व चीनी मिलों के अपशिष्ट युक्त जल के नदी में आकर मिल जाने से है। वही प्रदूषण की मार से पानी जहरीला होकर जीवों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। वही गंडक नहर प्रणाली पर स्थित गनेशा पट्टी फाल के माध्यम से नहर के ओवर फ्लो को बासी नदी में मिलाने के कारण नहर का सिल्ट नदी में जमा होने से नदी की गहराई और चैड़ाई प्रभावित होती रहती है।
इस विषम परिस्थिति के कारण जलीय जंतुओं के विलुप्त होने से नदी में उगे जलीय पौधों का पूर्णतः उपभोग न होने के कारण अवशेष बचे जलीय पौधों के सड़ने से भी नदी का पानी प्रदूषित हो रहा है। नदी में प्रदूषण के कारण इसके पानी से बदबू भी आने लगी है।
यही नही इस नदी के नारायणी में मिलने से नारायणी भी प्रदूषित हो रही है। अगर ऐसे ही रहा तो बासी भी हिरण्यावती नदी की तरह यह भी इतिहास में ही रह जायेगी। निवर्तमान जिलाधिकारी कुशीनगर आर सैम्फिल ने इसकों प्रदुषण से मुक्त करने की योजना को बनाने के आश्वासन दिया था। उनके स्थानान्तरण के बाद न तो योजना बनी और न ही उसकी स्थित में सुधार आया। ऐसी स्थित है कि राम की इस बांसी नदी को प्रदुषण मुक्त कराने की किसी जनप्रतिनिधि ने भी जहमत नही उठायी। जिसका परिणाम है कि प्रदूषित होती नदी का स्तीत्व आज भी खतरे से उबर नही पाया है।

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