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मोबाईल ने बदल दिया जीने का ढ़ंग, कही खुशी -कही गम


टाईम्स आफ कुशीनगर व्यूरो।
कुशीनगर ।बदलते युग के साथ मोबाईल इतना जल्द सब कुछ बदल देगा इसका किसी को अभास नही था। कोई खुश है तो कोई इसके प्रयोग को लेकर संकट में है।
जहां एक तरफ इसकी अच्छाई दुसरे को प्रभावित कर रही है वही कुछ पेशेवरों को हानि का सामना करना पड़ रहा है।अभी ज्यादा समय नहीं बीता है जब लोगों को सूचना मिलने में हफ्तों लग जाते थे। लोग सूचना के लिए डाकिए का इंतजार करते थे। परीक्षाओं का रिजल्ट सुनने के लिए बेताब होते थे। परीक्षार्थी अखबारों में अपना डिवीजन खोजते थे। प्रेमी-प्रेमिका को इश्क प्यार करने की बात का जज्बा पत्रों व लेटरों से होती थी। लोगों के हाथों की कलाई में घडि़यां शोभा बढ़ाती थीं। लेकिन आज मोबाइल ने इन सबको खत्म कर दिया है। लोगों की सूचनाएं अपनों के साथ सेकंडों में मिल रही है।
रिजल्ट का पूरा विवरण मिन्टों में मोबाइल पर आ रहा है। आज प्रेमी- प्रेमिका इश्क व प्यार वाले दो दिलों की बातें मोबाइल से हर पल कर रहे हैं। अब मोबइल में र्वल्ड घड़ी का फंक्शन है जिससे कलाई में घड़ी की जरूरत खत्म हो रही है।
जहां देखों वहां मोबाइल का धुन सुनाई दे रहा है। पूर्व के कुछ वर्ष पहले डाकिया का लोग इंतजार करते थे कि उनके पति बेटा या अन्य किसी रिश्तेदार का पत्र आयेगा और उनका हालचाल मिलेगा लेकिन आज डाकखानों से इस तरह का कोई पत्र नहीं आ रहा है।
लोगों को मोबाइल से हालचाल मिल जा रहा है। लोगों के लिए डाकघर बेमतलब साबित हो गया है। पहले लोग प्यार के इजहार का माध्यम पत्र समझते थे। पत्र के माध्यम से अपने बातों का आदान प्रदान करते थे। उन दोनों को अपने पत्रों का इंतजार रहता था। लेकिन आज मोबाइल के इस युग में अपने प्यार का इजहार प्रति सेकेंड करते नजर आ रहे हैं।
मोबाइल पर इंटरनेट द्वारा चैटिंग कर नये दोस्त बनाकर अपने जिन्दगी को आगे बढ़ा रहे हैं। आज वह भी हालत आ गयी है कि घड़ी के अच्छे दुकानदार व घड़ीसाज अपने किस्मत को कोश रहे हैं। जब मोबाइल में पूरे दुनिया के किसी भी देश का समय पता चल रहा है तो कलाई घड़ी को कौन लगायेगा। इसी लिए घड़ी के कारीगरों के दुकानों पर भी सन्नाटा छाया रहता है। कुछ घड़ी के कारीगर अपने इस धंधे को छोड़कर अपना अलग कुछ कारोबार अपनाने पर विवश हो गये हैं।
पडरौना नगर के एक घड़ी व्यवसायी रमेश शर्मा ने बताया कि मोबाईल ने कलाई घडि़यों का सीजन ही खत्म कर दिया है। हालत ऐसी है कि ये न तो खरीदी जा रही है और न ही बनवायी जा रही है ।
वही एक डाकिया राध्येश्याम का कहना था कि पहले किसी के घर उसके बेटे की चिठ्ठी लेकर हम जाते थें वो कितना खुश होता था। लेकिन अब तो बेटे की नही उसे हम कोर्ट की ही चिठ्ठी पहुचाने जाते है। क्योकि बेटा तो उससे मोबाईल पर ही बात कर लेता है।

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