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आज भी अपने पिछड़ेपन पर दुःखी है कुशीनगर

टाइम्स ऑफ़ कुशीनगर ब्यूरो 
कुशीनगर। भगवान बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर आज भी अपने पिछड़ेपन पर दुःखी है। समस्याएं यहां विकराल होती जा रही है और लोग समस्याओं के निस्तारण के लिए पीछले 67 सालों से बेहतर प्रतिनिधित्व की तलाश में है लेकिन इस बार भी बेहतर प्रतिनिधित्व के आसार कम नजर आर रहें हैं जो पिछड़ेपन को दूर कर सके।

कुशीनगर की धरती पर फिर एक बार बेहतर प्रतिनिधित्व के तलाश का मौका 12 मई को आया है। सोमवार को करीब 17 लाख मतदाता कुशीनगर लोकसभा क्षेत्र के लिए मतदान कर अपना प्रतिनिधि चुनने वाले है। आज भी कुशीनगर की स्थित बेतहर नही हो पायी है। हर चुनाव में इसे बेहतर बनानें के कई वादे हुए, योजनाएं भी बनी पर स्थिति पूरानी ही रही। दम तोड़ता चीनी उद्योग और पिछड़ापन का अभी तक कोई स्थायी इलाज नही हो सका है। स्थितियां ऐसी है कि कई ग्रामीण इलाके ऐसे भी हैं जहां अब भी आवागमन की सुचारु व्यवस्था नहीं है। स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं, लोग इंसेफेलाइटिस का दंश झेलने को मजबूर हैं। कुशीनगर में 400 करोड़ की मैत्रेय परियोजना एवं कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट की बात सामने आयी तो लगा कि कुशीनगर की घरती चमक उठेगी। अफसोस की आज भी ये योजनाएं अधर में लटकी है।

इस बार भी कुशीनगर लोकसभा को विकसित करने के लिए 14 उम्मीदवार मैदान में है। जिसमें केंद्रीय गृह राज्यमंत्री आर.पी.एन. सिंह एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर किस्मत आजमा रहे हैं। उनके मुकाबले भाजपा ने पूर्व मंत्री राजमंगल पांडेय के पुत्र राजेश पांडेय उर्फ गुड्डू को उतारा है जबकि बसपा ने डॉ. संगम मिश्र तथा समाजवादी पार्टी ने हाटा के विधायक राधेश्याम सिंह को टिकट दिया है। आम आदमी पार्टी के अखंड प्रताप सिंह मैदान में हैं। खास बात यह कि कांग्रेस को छोड़ सभी दलों ने 2009 के अपने प्रत्याशी बदल दिए हैं। 
कुशीनगर लोकसभा सीट से केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री आर. पी. एन. सिंह 2009 में पहली बार सांसद चुने गए थे। ़इस बार मोदी की लहर है। सभी उम्मीदवार इस लहर को पार उतरने के लिए कयास में है। विकास के नाम पर वैसे तो राजनीतिक दलों के दावे बहुत हैं, लेकिन गरीबी-बदहाली ही यहां की हकीकत है। नौ चीनी मिलों वाले इस कुशीनगर में 5 मिलें बंद हैं। करोड़ों रुपये गन्ना मूल्य अब भी बकाया हैं। किसान निराश हैं, जिसके कारण गन्ना क्षेत्रफल भी घट रहा है। हर साल नारायणी नदी की बाढ़ से क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा तबाह हो जाता है। वर्ष 2007 में बाढ़ से बचाव, पुनर्वास एवं बंधों की मरम्मत के लिए 400 करोड़ रुपये की परियोजना बनाकर यहां से भेजी गई लेकिन अब तक मंजूरी नही हुई। बाढ़ से तबाह गांवों के लोग पुनर्वास ढूढ़ रहे हैं। अभी तक बंधे पर रहे रहे सीताराम को दुःख है कि प्रशासन के साथ जनप्रतिनिधियों ने भी बाढ़ पीडि़तों को अकेला छोड़ दिया है। भागमनी कहती हैं कि हमें तो केवल चुनाव में पूछा जाता है। हकीकत यह है कि इस चुनाव में भी विकास के मुद्दे गौड़ नजर आ रहे हैं। शिक्षक शिवजी त्रिपाठी कहते हैं कि जातीय समीकरण और मोदी लहर हावी है।
कठकुईयां के एक व्यवसायी छोटे मिश्रा को मोदी लहर के कारण यहां भाजपा और कांग्रेस में लड़ाई दिखाई देती है। पडरौना के एक व्यवसायी तौसिफ अहमद खां को भी मोदी की चर्चा तेज सुनाई देती है, लेकिन उन्हें सपा समीकरणों में मजबूती नजर आ रही है। रामकोला के किसान हरिओम मोदी लहर को प्रभावी बताते हैं। रामकोला के खाद व्यापारी बुनेला गुप्त कहते हैं मोदी की लहर जरूर है लेकिन सपा मजबूती से लड़ रही है। कसया के रवि जायसवाल कहते हैं कि सपा, कांग्रेस और भाजपा के बीच ही लड़ाई है।

कुशीनगर जनपद में कहीं भी यह मुद्दा नहीं उठा कि दोघरा पट्टी, गोगापट्टी, मैनपुर, दहारीपट्टी सहित लगभग डेढ़ दर्जन मुसहर बस्तियों में अब भी कई लोग नहर का पानी पीते हैं। दोघरा के बुजुर्ग मुन्नर कहते हैं, वह पचहत्तर वर्ष के हो गए लेकिन गांव में न बिजली आई न सड़क बनी। इतना ही नही कुशीनगर में ही है पिपराघाट, जो कुछ साल पहले राहुल गांधी की नाव यात्रा के कारण चर्चा में आया था। नारायणी के उस पार बसे इस गांव में पहुंचे राहुल ने नदी पर पुल बनवाने का वादा किया था। यहां के लोगों को अब भी पुल बनने का इंतजार है। हर पांच साल पर चुनाव होते है।लोग फिर से तलाश शुरू करतें है और देखते-देखते मतदाता किसी को जाति के नाम पर किसी को धर्म के नाम पर तो किसी को वादों के नाम पर अपना मत दे बैठतें है और न चाहते हुए भी कोई दुसरा व्यक्ति जीत जाता है। यह प्रक्रिया पिछले 67 सालों से अली आ रही है। जिसका कारण है कि पिछड़ापन आज भी बरकरार है। 

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