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शान्ति का प्रतिक कुशीनगर करह रहा है पर्यावरण की अशान्ति से



   राजमार्ग के किनारे बसे नगरों से प्रति माह निकलता 10 से 15 टन कचरा

अजय कुमार त्रिपाठी  

कुशीनगर । विश्व कें मानचित्र पर शान्ति के प्रतिक भगवान बुद्ध की परिनिवार्ण स्थली कुशीनगर पर्यावरण की अशान्ति में अव्यवस्थित हो गयी। कभी पेड़ की हरियाली से राहगीरों की क्षुब्धा को शान्त करने वाली यह धरती  अपने हजारो बृक्ष को विकास की अवधारणा को पूरा करते करते बलि दे चूकी है। अब इसे मात्र हरियाली की पचूर  आवश्यकता होने लगी है कही दूर-दूर तक कुछ नही दिखायी देता।

ज्ञातव्य हो कि  कुशीनगर जनपद में राष्ट्रीय राजमार्ग 28 को फोन लेन में बदले जाने से न सिर्फ आवागमन सुलभ हुआ बल्कि विकास को तेजी से गति मिल रहा है। इसके चैड़ीकरण क्रम में कुशीनगर की 68 किमी सीमा में पड़ने वाले तकरीबन 15000से 16000 हरे छायादार पेड़ों को छह वर्ष पूर्व बेरहमी से काट दिया गया जो पांच दशक पूर्व हरियाली के लिए लगाये गये थेे। कुशीनगर की हरियाली फोर लेन के विकास में अपनी बली दे दी। अब जिला में सुनी सुनी सड़के अपने दुखड़े पर रोती नजर आ रही है। कदम-कदम पर रहे ये विशाल पेड़ कभी अपने गांव व जवार की पहचान हुआ करते थेे। अब तो न ये पेड़ रहे और न ही इन गांव की पहचान रही सब एक जैसे दिखायी देने लगे है। उधर इन सड़को के किनारे बसे नगरो से करीब 10 टन से 15 टन तक का कचरा पर्यावरण के लिए खतरा बन गया है। जो पग-पग पर कुशीनगर को प्रभावित करता नजर आ रहा है ।

कुशीनगर में फोर लेन पर फर्राटा भरती गाडि़यां विकास की छलक दिखाती हैं। वही गड्ढ़ा व जाम से मुक्त सड़कें आवागमन की सुलभता की बदौलत सुकून भरी यात्रा का अहसास कराती है। वही वायु प्रदूषण की बढ़ती मात्रा भी कुशीनगर को प्रभावित करने लगी है। जानकारी के अनुसार गोरखपुर की सीमा सुकरौली ब्लाक के मझना नाला से तिनफेडि़या जो बिहार बार्डर माना जाता है वहां तक जिले की सीमा में फोर लेन पर छायादार पेड़ कुछ तो सुख गये और कुछ को कटवा दिया गया अब स्थिति ऐसी है कि चारो तरफ रेगिस्तान की की तरह मैदान ही मैदान हो गया है ।

उधर दुसरी तरफ इसकी रखवाली करने वाले ही इन्हे विकास के नाम पर बली देना कह रहे है स्थिति ऐसी में विभाग के पास इनके समतुल्य उनके पास कोई दूसरा विकल्प नही रहा। पर्यावरण की बढ़ती समस्या से हर बर्ग कराह रहा है और विभाग अपने कार्यवाही को उसी तरह चला रहा है जैसा कि बर्षो पूर्व चलता रहा है।

कड़ाके की सर्दी के बाद पड़ने वाली चिलचिलाती गर्मी निश्चित ही राहगीरों को छाव व ठौर की आस में रुलाएगी। कारण पैदल चलने वालों को दूर-दूर तक छाव का जतन नही है। कटे पेड़ के बदले पेड़ लगाए नहीं गए। यदा-कदा जहा लगाए भी गए वहां कोरम पूर्ति की गई। इनसे छाव की उम्मीद दस वर्ष पहले संभव होती नहीं दिख रही है।

इस सम्बन्ध में कुशीनगर के सम्भागीय प्रभागीय वनाधिकारी आरपी सिंह बताते है कि फोर लेन निर्माण में काटे गए छायादार पेड़ों के बदले पांच गुना पौधरोपण के लिए क्षतिपूर्ति मद हेतु केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि एन एच आई ने सड़क के किनारे पौध रोपण के लिए तनिक जगह नहंी छोड़ी है, इससे पेड़ लगाने में दिक्कतें आ रही हैं।

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