"ऐ मेरे वतन के लोगों, आंखों में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी।"
नई दिल्ली,एजेंसी। इस गीत को देशभक्ति के हर अवसर पर गाया जाता है, इस गीत ने भारत के प्रथम
प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की आंखें नम कर दी थीं, और 1962 के
भारत-चीन युद्ध के बाद इसी गीत ने देशभक्तों के मनोबल को फिर से उठाने का
काम किया था।
जी हां, हम बात कर रहे हैं 'ऐ मेरे वतन के लोगों' की। राष्ट्रीय कवि
प्रदीप द्वारा लिखे गए इस गीत ने कई मौकों पर भारतीयों को एकजुट करने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस गीत ने 2013 में अपने 50 साल पूरे कर लिए
हैं।
राष्ट्र गान और राष्ट्र गीत की तरह उतनी ही श्रद्धा के साथ इस गाने को आज
भी गाया जाता है। 27 जनवरी 1963 की शाम राजधानी दिल्ली के राष्ट्रीय
स्टेडियम में जब लता मंगेशकर ने इस गाने को गाया, तो वहां मौजूद सभी लोगों
की आंखें नम हो गई थीं।
तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, सभी
कैबिनेट मंत्रियों सहित पूरी फिल्म इंडस्ट्री, जिसमें दिलीप कुमार, देव
आनंद, राज कपूर, राजेन्द्र कुमार, गायक मोहम्मद रफी, हेमंत कुमार प्रमुख
थे, इस मौके पर मौजूद थे।
कवि प्रदीप की बेटी मितुल ने इस मौके पर बताया कि दुर्भाग्य से हमारे पिता
को इस कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया गया। जब नेहरू तीन महीने बाद 21
मार्च 1963 को मुंबई आए, तो आर एम हाई स्कूल के कार्यक्रम में मेरे पिता ने
विशेष रूप से उनके लिए यह गाना गाया और उन्हें अपने हाथों से लिखी गई
वास्तविक कविता की प्रति भेंट की।
यह गीत युद्ध के नायकों और शहीदों के लिए एक श्रद्धांजलि है। इस गीत ने हर
उम्र के लोगों को 1962 की हार के बाद पैदा हुए गुस्से को नियंत्रण में करना
सिखाया। आज 50 साल बाद भी इस गीत की लोकप्रियता बरकरार है और सभी प्रमुख
राष्ट्रीय कार्यक्रमों के अवसर पर इस गाने को अवश्य बजाया जाता है।
इस गाने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है।
प्रदीप, जो हर भारतीय की तरह 1962 के युद्ध की हार से निराश थे, एक दिन
मुंबई के माहिम बीच पर सैर के लिए निकले। अचानक उनके दिमाग में ये
पंक्तियां आईं। उन्होंने अपने साथ सैर पर आए साथी से पैन मांगा, सिगरेट के
डिब्बे से पन्नी निकालकर उस पर इस गाने का पहला छंद लिखा, "ऐ मेरे वतन के
लोगों, आंखों में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो
कुर्बानी।"
कुछ हफ्तों बाद निर्माता महबूब खान ने उनसे राष्ट्रीय स्टेडियम में आयोजित
एक कार्यक्रम के लिए उद्घाटन गीत लिखने के लिए कहा। प्रदीप के कहा कि वे
इसके लिए तैयार हैं, लेकिन वे अभी इसकी कोई जानकारी नहीं देंगे। इसके बाद
उन्होंने लता मंगेशकर और संगीत निर्देशक सी रामचंद्र को अपनी इस योजना में
शामिल कर लिया, और उसके बाद जो हुआ, वो आज तक एक इतिहास है।
मितुल कहती हैं कि रामचंद्र और लता दीदी के बीच कुछ गलतफहमी के कारण, यह
गाना आशा भोसलें के द्वारा गाया जाने वाला था। लेकिन मेरे पिता को पूरा
विश्वास था कि लता दीदी के अलावा कोई भी इस गाने के साथ न्याय नहीं कर
पाएगा। उन्होंने लता दीदी को आश्वस्त किया और वो गाने के लिए राजी हो गईं।
लेकिन उनकी एक शर्त थी कि प्रदीप रिहर्सल के समय खुद मौजूद रहेंगे।
गौरतलब है कि प्रदीप (अगले महीने उनका 98वां जन्मदिन मनाया जाएगा) का जन्म
मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले के बड़नगर में 6 फरवरी 1915 को रामचंद्र
नारायणजी द्विवेदी के घर हुआ। प्रदीप ने लगभग 1700 कविताएं और 72 फिल्मों
के लिए गाने लिखे।
1987 में दिए गए एक साक्षात्कार में प्रदीप ने कहा था कि कोई भी तुम्हें
देशभक्त नहीं बना सकता। यह सब आपके खून में होता है। यह आपके ऊपर है कि आप
इसे कैसे इस्तेमाल करते हैं।
1939 में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद वो एक शिक्षक बन गए, लेकिन
अपने लेखन के जुनून और विभिन्न कार्यक्रमों में अपनी कविताओं के गायन के
बाद उन्होंने अपना नाम प्रदीप रख लिया। मुंबई में एक समारोह के दौरान
उन्हें गीतकार के रूप में उनकी पहली फिल्म "कंगन" (1939) की पेशकश की गई।
हालांकि, प्रदीप को पहचान दिलाई 1940 में आई फिल्म "बंधन" ने, जिसमें उनके द्वारा लिखा गया गीत "चल चल रे नौजवान" बहुत लोकप्रिय हुआ।
तीन साल बाद आई "किस्मत" फिल्म के गीत "दूर हटो ऐ दुनियावालों" ने उनकी
ख्याति को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा दिया। हालांकि, ब्रिटिश सेंसर बोर्ड ने
पहले इस गीत को मंजूरी दे दी थी, लेकिन जब उन्हें इस गीत का भावार्थ समझ
में आया, तो उन्होंने तत्काल रूप से प्रदीप की गिरफ्तारी का आदेश जारी कर
दिया और प्रदीप लगभग एक साल के लिए भूमिगत हो गए।
"बंधन" के बाद प्रदीप ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक देशभक्त होने के
नाते उन्होंने अपने राष्ट्रवादी गीतों के जरिए जनता के बीच उत्साह का संचार
करना जारी रखा।
प्रदीप के कुछ बेहतरीन गीतों में "आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी
हिन्दुस्तान की", "हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना
मेरे बच्चों संभाल के", दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढ़ाल, साबरमती के
संत तूने कर दिया कमाल"(सभी "जागृति" फिल्म से), "ऊपर गगन विशाल" ("मशाल"),
"देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान"
("नास्तिक") शामिल हैं।
इस बीच, प्रदीप अचानक सुबोध मुखर्जी की फिल्म "संबंध" (1969) से मुख्यधारा
में वापस लौटे। इस फिल्म में उन्होंने कई हिट गाने दिए, जिनमें "चल अकेला,
चल अकेला, तेरा मेला पीछे छूटा" श्रोताओं को सर्वाधिक पसंद आया। इस गाने को
स्वर दिया था मुकेश ने और संगीत था ओपी नैयर का।
1975 में कवि प्रदीप ने एकबार फिर से जोरदार वापसी की। उसी साल बनीं फिल्म
"जय संतोषी मां" ना सिर्फ सुपरहिट रही और कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़े,
बल्कि उस गीत का टाइटल सांग "मैं तो आरती उतारूं रे" ने लोकप्रियता के सारे
रिकॉर्ड तोड़ दिए।
उनके गीतों में कशिश, लोगों को छूने का माद्दा और बेहिसाब लोकप्रियता को
देखते हुए 1958 में एचएमवी ने एक एलबम रिलीज किया, जिसमें प्रदीप के
देशभक्ति से लबरेज 13 चुनिंदा गानों को जगह मिली।
प्रदीप की शानदार लेखन शैली की वजह से उनके कई पुरस्कार दिए गए। 1997 में
उन्हें "दादा साहेब फाल्के पुरस्कार" दिया गया। इसके ठीक एक साल बाद 11
दिसंबर 1998 को उनका निधन हो गया।
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