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बसपा सरकार ने 35 करोड़ की चीनी मिल बेच दी 3.6 करोड़ में


  •    क्रेता ने चलाने के जगह कल पुर्जे भी बेच दिया

  •     सरकार और प्रशासन अब तक नही लिखा सका चोरी का मुकदमा

कुशीनगर। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में छितौनी चीनी मिल का प्रकरण गहराता जा रहा है बसपा सरकार व स्थानीय प्रशासन की मदद से करीब 35 करोड़ की चीनी मिल को मात्र 3 करोड़ 60 लाख में बेच दिया गया। उसके बाद उसके कलपूर्जे भी चोरी छिपे बेच दिये गये। अब तक उस क्रेता के खिलाफ चोरी का मुकदमा भी प्रशासन नही दर्ज करा सका है ।


मिली जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य चीनी मिल निगम लिमटेड की छितौनी ईकाई को 30 मार्च 2011 को तत्कालिन प्रदेश सरकार ने मुहम्मद आकिल निवासी सड़क दुघली सहारनपूर के हाथों बेच दिया। बेचने का मुख्य उद्देश्य इस चीनी मिल को पुनः चलाना था।

हद तो तब हो जब चीनी मिल न चला कर क्रेता ने बिना किसी सक्षम अधिकारी के परिमिशन पर चीनी मिल के कल पूर्जे काट कर चोरी छिपे बेचा दिया गया। यह मामला बस इतने तक नही रहा प्रशासन को भी चोरी छिपे बेचे गये कल-पूर्जे की खबर नही हुयी।

लेकिन जब गत 25 दिसम्बर 2012 को इस चीनी मिल के पूर्व प्रबन्ध निदेशक के पूत्र संजय कुमार तुलस्यान ने जिलाधिकारी सहित लोकायुक्त को पत्र लिख कर छितौनी मिल के क्रेता के खिलाफ चोरी का मुकदमा दर्ज करानें की मांग की थी।

इस पत्र के बावजूद भी प्रशासन ने चीनी मिल क्रेता के खिलाफ मुकदमा दर्ज नही कराया। पत्र में संजय ने कहा है कि चीनी मिल क्रेता आकिल किसी सक्षम अधिकारी के बिना परिमिशन के मिल हाउस के अन्दर प्लान्ट का लगभग 90 प्रतिशत सामान जिसकी अनुमानित मुल्य 35 करोड़ होगी, को अबैध रूप से टुकड़ों में कटवा कर चोरी-चुपके ट्रको से अज्ञात स्थानों पर बेच दिया। जब कि क्रेता द्वारा छितौनी मिल 3 करोड़ 60 लाख रूपये में खरीदा गया। जिसके विक्रय पत्र में शर्त संख्या 2.6 में स्पष्ट अंकित है कि क्रेता चीनी मिल युनिल को चलाने व आपरेट करने हेतु आवश्यक परिमिशन सक्षम प्राधिकारी आदि से प्राप्त करेगा। तथा मिल हटाने व भेमि का प्रयोग करने का कोई अधिकारी क्रेता को प्राप्त नही है। यही नही पत्र के साथ मुकदमा पंजीकृत कराने हेतु अनेक साक्ष्यों के साथ अनेक पत्र भी भेजें जा चूके है।

ज्ञातव्य हो कि इस चीनी मिल को सेठ भोली राम तुलस्यान ने स्थापित किया था। उनके पुत्र भूतपूर्व प्रबन्ध निदेशक छितौनी चीनी मिल विश्वनाथ प्रसाद तुलस्यान द्वारा छितौनी चीनी मिल किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए अपने आर्थिक कमजोरी के कारण सरकार को दे दिया था लेकिन सरकार कुछ दिनों तक इसे चलाकर और फिर आकिल पुत्र मुस्ताक अहमद के हाथों बेच दिया।

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