कुशीनगर में अठ्ठारह हजार की आबादी का जीवन भीख के सहारे
परिवार के मुखिया नही बच्चे चलते है परिवार का खर्च
टाईम्स आफ कुशीनगर व्यूरो
कुशीनगर । उत्तर प्रदेश के कुशीनगर एक ऐसा समुदाय है जिसमें परिवार का खर्च घर का मुखिया नही उस घर का मासूम बेटा या बेटी चलाती है। इस समुदाय की कुल आबादी लगभग अठ्ठारह हजार के करीब है ।
समाज की मुख्य धारा से अलग से इस समुदाय का मुख्य व्यवसाय भीख मांगना, कठपुतलियों का नांच दिखाना आदि है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि तमाम सरकारी सुविधाओं के बावजूद इन्हें किसी तरह की सरकारी सुविधा नही मिल पाती जिससें उनकी स्थित हमेशा दयनीय रहती है।
जिसका प्रमुख कारण है कि नट नाम से जाना जाने वाला यह समुदाय अनुसूचित जाति में आता है। इस समुदाय का कोई स्थायी निवास नही है। जिससे इनकी स्थित ऐसी हो जाती है कि इस समुदाय पर शिक्षा का अधिकार अधिनियम, खाद्य सुरक्षा अधिनियम आदि तमाम अधिनियम का कोई असर नही दिखता।
परिवार के मुखिया या किसी सदस्य को कही रोजगार नही मिलता क्योकि उनका कही कोई स्थायी निवास नही है। ऐसे में वह अपने बच्चे को भीख मांगने के लिए प्रेरित करते हंै। पिता या मुखिया की बात को टालने की हिम्मत न रखने वाले मासूम भीख मांगना शुरू कर देतें हंै। जैसेे ही उनका बचपन बीतता है उनकीं शादी हो जाती और फिर बच्चें भी वही करना शुरू कर देते हंै।
कुशीनगर जनपद में ऐसे परिवारों की कुल आवादी लगभग 18000 है। जों जिलें बहोरापुर, , नरसर, शिवराजपुर, कुड़वा दीलिप नगर, धूरिया, कुशीनगर, माधोपुर, सिरसिया, धनौजी, दुदही, चैरिया सहित दर्जनों गांव में ये अस्थायी रूप से देख जाते है।
नटों के लिए काम कर रहे रामधार कुशवाहा बताते है। परिवार की दयनीय स्थित के कारण ये इस समुदाय के बच्चें स्कूल नही जा पाते और परिवार के मुखिया बच्चों परिवार का खर्च चलाने के लिए भीख मगवाते है। इनकी स्थिति जो आजादी के पहले थी वह आज भी बनी हुयी है। जैसे लगता है कि भारत का कानून इन पर लगता ही न हो। अधिकांश गांवों में इन्हें आवास तो दूर राशन के लिए राशन कार्ड तक नही है। भीख न मांगें तो इनका परिवार भूखें ही मर जायेगा।
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