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अधिकार की लड़ाई में: चार सौ बर्ष पुराने मठ का अस्तीत्व खतरे में


कुशीनगर । उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में चार सौ वर्ष पुराना मठ उत्तराधिकार के विवाद में उलझकर रह गया है। स्थिति ऐसी हो गयी है कि अब प्राचीन मठ के अस्तित्व पर ही संकट मड़राने लगा है। जिसका प्रभाव है कि इस मठ पर लगभग एक महीने तक लगने वाला मेला अब यहां फीका पड़ता जा रहा है। तीन वर्ष पूर्व इस मठ से चोरी गई मूर्तियों का भी पता भी अब तक नहीं लग सका।

ज्ञातव्य हो कि सिद्ध पीठ यह मठ हाटा से दक्षिण तरफ लगभग चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित करमहा के नाम से प्रसिद्ध है। नाथ संप्रदाय के इस मठ की दो अन्य शाखाएं बन्चरा तथा मगरुआ में भी स्थित है। तीनों शाखाओं को मिलाकर लगभग सौ एकड़ से भी ऊपर भूमि आज भी सरकारी अभिलेखों में मठ के नाम से दर्ज है।
इन तीनों में करमहा मुख्य मठ है। जिसके संस्थापक महंथ बाबा दुखीनाथ हुआ करते थे। उनके मरने के बाद बाबा के शिष्य हंसनाथ ने मठ की गद्दी संभाल ली। बाद में इनके दो शिष्य मथुरानाथ व रक्षा नाथ बने जिनकी ख्याति क्षेत्र में सिद्ध पुरुषों की थी।
इसमें मथुरानाथ महंथ बने और इनके मृत्यु के बाद महावीर नाथ ने गद्दी संभाल ली। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय पर बालक अवध विहारी पांडेय को 12 वर्ष की उम्र में मठ का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
इसी बीच मध्यप्रदेश से बद्रीनाथ नाम के एक साधु घूमते फिरते इस मठ पर पहुंच गये। जो इनके साथ ही रहने लगे। महावीर नाथ की मृत्यु के बाद अवध विहारी पांडेय व बद्रीनाथ के बीच उत्तराधिकार को लेकर विवाद होने लगा। कुछ दिन बाद बद्रीनाथ की हत्या अज्ञात बदमाशों ने कर दी। इसके बाद वर्ष 1992 में अवध विहारी पांडेय की भी हत्या हो गई।

उन्होंने अपना उत्तराधिकारी नामित नहीं किया था। इस लिये अब मठ लावारिस होकर रह गया है और उत्तराधिकार के लिये कई लोग आमने सामने आ गये। तत्कालीन ग्राम प्रधान बाबूलाल सिंह ने मठ की देखभाल के लिये प्रशासन को सूचित किया तब से तहसीलदार हाटा इस मठ के सरवरकार नियुक्त है। अब कई दावेदारों के हट जाने के बाद राजेशनाथ व विवेकनाथ ही उत्तराधिकार की लड़ाई आमने सामने लड़ रहे है। यह मामला उच्च न्यायालय इलाहाबाद में विचाराधीन है।

उत्तराधिकार के विवाद में फंसा यह सिद्ध पीठ अपने दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है क्योंकि मंदिर का भवन जहां जर्जर हो गया है। वहीं पूजा पाठ की जिम्मेदारी एक विकलांग साधु द्वारा निभाई जा रही है। वहीं महीनों तक लगने वाले यहां के मेले में जहां दूर दूर से लोग लकडि़यों के सामान के लिये आया करते थे। अब उस मेले वाले स्थान पर प्रशासन ने पौधरोपड़ करा दिया है। जिससे अगहन मास की पंचमी से शुरु होकर एक महीने तक लगने वाला मेला अब यहां फीका पड़ चुका है।

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