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गांधी जी के अनुयायियों की बेदना ही बया कर रही सच्ची श्रद्धांजली की हकीकत



कुशीनगर।  बापू की यादों को सही मायने में याद करना तो केवल उनके अनुयायियों से सीख सकता है। आज तो केबल दिखावा है बास्तविकता तो गांधी जी के अनुयायियों की बेदना ही बया कर रही है जो हृदय में शुल की तरह चुभती है कि कास हम इसे नही सुनते।

मंगलवार को दो अक्टूबर था। गांधी के प्रतिमा पर फूल-माला चढ़ा कोरमपूर्ति कर ली गयी। अमर रहें के नारे भी लगा लिए गये। लेकिन गांधी के टूटते सपनों को पूरा करने की पहल और उनके अनुयायियों के दर्द को बांटने की कवायद नही हुयी जो सही मायेन में गाॅधी की श्रद्धांजली थी।
कुशीनगर जनपद पडरौना नगर में चार गांधी आश्रम केंद्र हैं। गांधी चैक से कुछ कदम की दूरी पर स्थित गांधी घर है। जहां कभी रघुपति राघव राजा राम की पावन धुन गूंजा करती थी। प्रातः काल निकलती थी प्रभात फेरियां जो एकता संदेश बांटती थी। बेकार हाथों को रोजगार मिलता था।

कर्मचारियों के चेहरों पर खुशी झलक थी तो गांधी के सपने भी खिलखिलाते दिखते थे। बदहाली के चलते इन आश्रमों में काम करने वाले एक दर्जन से ऊपर कर्मचारियों के भविष्य पर भी संकट खड़ा होता दिख रहा है।
यह हकीकत है उन यादों की है जिसने आजाद भारत के लिए धागें बनाये और उनको पहन कर अपने आप को आत्म निर्भर बनाने की पहल की थी।

 उनके अनुयाईयों का दर्द है जो उनके सपनों को संजोने के साथ अपना भविष्य भी संवारना चाहते हैं।पर हालत ऐसी है गांधी के सपने कि खादी की मंहगाई के साथ आम जन से दुर होते जा रहे हैं। जिससे खादी की आय घटती जा रही है। 

गांधी जी की बात करने पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पूर्व मंत्री 92 वर्षीय रामधारी शास्त्री बताते है कि आजाद भारत में आज तक गांधी का सपना पूरा नही हो सका। अधूरे पड़े हैं उनके सपने। गांवों में रोजगार का मजबूत ढ़ांचा नही खड़ा हो सका।

शिवजी त्रिपाठी (शिक्षक) बताते है कुटीर उद्योग की बात बेमानी हो चली है। ऐसे में गांधी के सपनों की क्या बात करते हैं। रामराज का उनका सपना कहां पूरा हो रहा है? जहां केवल सवाल ही हो सवाल हो तो उसके पूरा होने की बात करना पूरी तरह से बेईमानी है। 

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