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रसोई गैस व डीजल कीमतों में बढ़ोतरी सरकार के नकारात्मक व्यवस्थापन का परिणाम


  •     हिन्दू त्योहारों के ही पहले बहुसंख्यको पर बोझ क्यो? - डा0 प्रवीण तोगडि़या
दिल्ली ।    सरकार ने डीजल की कीमत रू. 5 से बढ़ाना और रसोई गैस 6 सिलेन्डर की मर्यादा डालना इन्हें सरकारी नकारात्मक व्यवस्थापन का परिणाम बताते हुए विश्व हिन्दू परिषद के अन्तरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष डा0 प्रवीण तोगडि़या ने सवाल किया कि ‘‘रु. 5 डीजल में बढ़ाना और अब गणेश पूजा, नवरात्रि, पर्यूषण, श्राद्ध, दीपावली आदि हिन्दू त्योहारों के दौरान ही रसोई गैस का कोटा शुरू करना इसके पीछे कौन से मतो की राजनीति है? अभी-अभी अल्पसंख्यकों का त्योहार हुआ, तब के और अब के  कच्चा तेल की कीमतों में अधिक फर्क नहीं आया फिर तब नहीं और अब यह बोझ क्यों?’’

डा. तोगडि़या ने सरकार के दावे पर सवाल किया ‘‘वैश्विक मंदी, विश्व में कच्चा तेल के भाव बढ़ना ये कारण पुराने हुए, अमेरिका गत कुछ वर्षों से अनेक वैश्विक बैठकों में भारत पर दबाव डाल रहा है कि सब्सिडी हटाई जाए, खाद अनाज, बीज, पेट्रोलियम उत्पाद आदि सभी पर से सब्सिडी हटाने के अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के दबाव में यह निर्णय भारत के 90 प्रतिशत गरीबों/माध्यम वर्गीयों पर थोपा गया है। 

अमेरिका और पश्चिम का अर्थशास्त्र और भारत जैसे परम्परागत और गरीबी बहुल देश का अर्थशास्त्र इनको एक ही पलड़े मंे तोलने से यह कुतर्की अर्थशास्त्रीय कीमत बढ़ोतरी और 6 के ऊपर के सिलेन्डरों पर सब्सिडी हटाना भारत पर लादा गया है। सरकार यह भी कहती है कि पेट्रोलियम कम्पनियाँ हर दिन रू. 50 करोड़ का घाटा सह रही हैं और उन पर रू. 90,000 करोड़ का कर्जा बढ़ा है। सीधे शब्दों में इसे नकारात्मक व्यस्थापन ही कहा जाना चाहिए। स्वयं कम्पनी और सरकार नियोजित रीति से ना चलाने का ठीकरा भारत की आम जनता पर फोड़ कर पहले से ही मंहगाई से त्रस्त गृहिणियों, छोटे उद्योगो, किसानों और अन्य सभी पर बड़ी कम्पनियों के घाटे का बोझ डालने का यह विकृत अर्थशास्त्र है।

 कम्पनियाँ घाटे में चल रही हैं तो उन्हें ठीक से चलाने के लिए भारत की अनेक उŸाम आय आय एम की, आय आय टी सलाह ले सरकार। मनुष्य बल विकास, विपणन, उत्पादन, अर्थ व्यवस्थापन आदि विषयों में निपुण लोगों की समितियाँ बनाकर घाटेवाली कम्पनियों को ठीक करे। उसके लिए लंदन स्कूल आफ इकोनोमिक्स की आवश्यकता नहीं होती।

 भारत की जीने की, खाने-पीने की, परम्पराओं की विशेष पद्धतियाँ समझकर अर्थ नीति नहीं बनी इसीलिए तो आज 65 वर्ष हुए भारत स्वतंत्र होकर, फिर भी सरकार गृहिणियों को कहती है केवल 6 सिलेन्डरों में साल भर का खाना बनाओ। भारत में लोग केवल संेडविवेस और पास्ता खाकर नहीं जीते, आज की मंहगाई में जो माँ बच्चों को दूध पीला सकती है, वह माँ बच्चे को अमेरिका जैसा फ्रिज से निकाला हुआ ठंडा दूध नहीं पिलाती। सरकारें जब तक भारत का ‘‘भारतपन’’ नहीं समझेगी, सरकारों का नकारात्मक व्यवस्थापन आम घरों पर बोझ बनता रहेगा।’’

    डा. तोगडिया ने कहा कि हिन्दू त्योहारों पर जीवनावश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ानेवाली डीजल कीमत में बढ़ोतरी और 6 सिलेन्डरों की मर्यादा का विश्व हिन्दू परिषद विरोध करती है और मांग करती है कि ये दोनों निर्णय तुरन्त वापस लिए जाए। उन निर्णयों के कारण अन्य जो कीमते बढ़ी है-स्कूल बस, सब्जियां, फल, माल धुलाई, रिक्शा, टैक्सी, दूध आदि- सभी कम की जाय। सरकार हिन्दुओं से माफी मांगे कि त्योहारों में आनन्द और सहयोग की जगह सरकार न उन्हें दुःख और चिन्ता का भोग बनाया।


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