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गुप्त कालीन पावानगर आज भी उपेक्षित


  •   गुप्त काल से हीयह क्षेत्र ज्ञान के लिए जाना जाता रहा


कुशीनगर । गुप्त काल से ज्ञान बाट रहे कुशीनगर में पावानगर के नाम से प्रसिद्ध नगर आज भी उपेक्षित है। इसके आस पास विभिन्न ऐतिहासिक टीलों एवं स्थानों के उत्खनन से गुप्त कालीन प्रमाण मिलते है।

इस इलाके का 1977 से 1979 के बीच गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग एवं उप्र सरकार के संस्कृति विभाग ने क्षेत्र में डा. शैलनाथ चतुर्वेदी के नेतृत्व में डा. दयानाथ त्रिपाठी, डा. तुंगनाथ दूबे, कृष्णानंद एवं आरसी राय की टीम की देखरेख में उत्खनन कराया। जिस पर गुप्तकालीन मुद्रा छाप ब्राम्ही लिपि में लेख लिखा मिला। जिस पर लिखा था च्रोराठग्रामा चातुर वेदस्य अग्रहारस्य। इसके अलावा मिट्टी के बर्तन, चूडि़यां व मूर्तियां भी मिली।

गुप्त काल में अग्रहार का दर्जा उन स्थानों से दिया जाता था जहां विद्या का कार्य किया जाता था। ब्राह्माणों को बुलाकर विद्या यानि शिक्षा की व्यवस्था गुरुकुल परंपरा के अनुसार की जाती थी। अग्रहार का दर्जा प्राप्त क्षेत्रों में राज सेवाओं का प्रवेश वर्जित था और यहां के लोगों से वसूली नहीं की जाती थी।

उत्खनन टीम के सदस्य डा. दयानंद त्रिपाठी ने दूरभाष पर बताया कि यह क्षेत्र इतिहास में श्रेविग्राम के नाम से जाना जाता है। उत्खनन में वैदिक हवन कुंड भी मिले जो अग्रहार ग्राम में ही होते थे। इन्हें प्राचीन इतिहास विभाग के संग्रहालय में रखा गया। जहां आज  भी उन्हे देखा जा सकता है।

इस सम्बन्ध में पूरातत्व विभाग के ए सी  त्रिपाठी ने बताया कि यह पूरा क्षेत्र हमारी सूची में है इसका एक-एक कर उत्खन्न कराया जायेगा।

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