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कुशीनगर में एक ऐसा सरकारी महकमा जहां नही मनायी जाती जन्माष्टमी



  •    शहीदों की याद में 18 बर्ष से  नही मनायी गयी जन्माष्टमी

कुशीनगर । उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में एक ऐसा सरकारी महकमा है जहां भगवान कृष्ण की प्रतीक जन्माष्टमी नही मनायी जाती है। करीब 18 बर्ष से यह कार्यक्रम चला आ रहा है।

कुशीनगर पुलिस आज से 18 वर्ष पूर्व 1994 में जन्माष्टमी की रात हुए पचरूखिया कांड में पुलिस व बदमाश मुठभेड़ में शहीद हुए पुलिसकर्मियों की याद में जन्माष्टमी के दिन श्रद्धांजली देती है इस त्योहार को नहीं मनाती।

जन्माष्टमी के ही दिन इस मुठभेड़ में जिले के तेज तर्रार सात पुलिसकर्मी शहीद हो गये थे। अभी हाल ही में पडरौना जनपद बना था।  इस घटना ने सबको नए शोक में डूबो दिया था। आज भी लोगों की जेहन में इस त्योहार के आते ही वह काली रात याद आ जाती है।

पुलिस का वह जूनून आज भी लोग काफी रोचकता से सूनते है। 29 अगस्त यानी जन्माष्टमी के दिन सदर पडरौना कोतवाली पुलिस को सूचना मिली कि कुख्यात बदमाश बेचू मास्टर व रामप्यारे कुशवाहा उर्फ सिपाही का पचरूखिया के ग्रामप्रधान राधाकृष्ण गुप्त के घर डकैती डाल हत्या करने की योजना है।

इसके बाद तत्कालीन कोतवाल योगेंद्र प्रताप सिंह ने यह सूचना पुलिस कप्तान बुद्धचंद को दी। एसपी ने कोतवाल को थाने में मौजूद फोर्स के अलावा मिश्रौली डोल मेला में लगे जवानों को भी मौके पर पहुंचने का निर्देश दिया।

इस दौरान पहुंचे पडरौना जनपद के तेज र्तरार व इन काउन्टर स्पेसस्लिस्ट एसओ तरयासुजान अनिल पांडेय को भी एसपी श्री चंद ने इस अभियान में शामिल होने का आदेश दिया।

इसके लिए दो पुलिस टीमों का गठन हुआ। सीओ सदर आर पी सिंह के नेतृत्व में गठित टीम में सीओ हाटा गंगानाथ त्रिपाठी, दारोगा योगेंद्र सिंह, आरक्षी मनिराम चैधरी, राम अचल चैधरी, सुरेद्र कुशवाहा, विनोद सिंह व ब्रह्मदेव पांडेय तथा दूसरी ओर एसओ तरयासुजान अनिल पांडेय के नेतृत्व में एसओ कुबेरस्थान राजेंद्र यादव, दरोगा अंगद राय, आरक्षी लालजी यादव, खेदन सिंह, विश्वनाथ यादव, परशुराम गुप्त, श्यामा शंकर राय, अनिल सिंह व नागेंद्र पांडेय को इस में अभियान में शामिल किया गया।

जन्माष्टमी की वह काली रात आज भी उतनी ही भयावह लगती है। कि रांगटे खडैं हो जाये। रात्रि साढे, नौ बजे बांसी नदी किनारे पहुंची पुलिस टीम ने बदमाशों के गांव में पहुंचने की खबर पर नाविक भुखल को बुला डेंगी को उस पार चलने को कहा। भुखल दो बार में डेंगी से पुलिस कर्मियों को नदी पार पहुंचाया।

कुछ देर के बाद उस पार पहुंची पुलिस काफी इंतजार पर वापस लौटने लगी। पहली खेप में सीओ समेत अन्य पुलिस कर्मी नदी इस पार वापस हो लिए। दूसरी टीम के डेगी पर सवार होकर चलते ही नदी के समीप पहुंचे बदमाशों ने पुलिस के होने की जानकारी पर बम विस्फोट करते हुए फायर झोंक दिया।

नाविक भुखल व आरक्षी विश्वनाथ यादव को गोली लगी, जिससे डेगी अनियंत्रित हो गई और सवार सभी लोग नदी में गिर पड़े। इस दौरान बदमाशों का पुलिस टीम पर फायरिंग लगातार जारी रहा, बदमाशों ने कुल 40 राउंड फायर किया था। घटना की सूचना सीओ सदर आरपी सिंह ने वायरलेस से एसपी को दी।

बाद में पहुंची फोर्स ने डेगी सवार पुलिसकर्मियों की खोजबीन की। जहां एसओ तरयासुजान अनिल पांडेय, एसओ कुबेरस्थान राजेंद्र यादव, तरयासुजान थाने के आरक्षी नागेंद्र पांडेय, सदर कोतवाली में तैनात आरक्षी खेदन सिंह, विश्वनाथ यादव, परशुराम गुप्त शहीद हो चूके थे।

घटना में नाविक भुखल भी मारा गया था। जबकि दारोगा अंगद राय, आरक्षी लालजी यादव, श्यामा शंकर राय व अनिल सिंह सुरक्षित बच निकले थे। घटना स्थल पर पुलिस के हथियार व खाली कारतूस बरामद हुआ, लेकिन अनिल पांडेय के पिस्तौल का पता अब तक नहीं चल सका।

मामले में कोतवाल वाईपी सिंह ने कुबेरस्थान थानाक्षेत्र में अज्ञात बदमाशों के खिलाफ अपराध संख्या 78-94 धारा - 147, 148, 149, 307, 302 आईपीसी, अपराध संख्या - 79-94 धारा - 25 आर्म्स एक्ट व अपराध संख्या - 80 - 94 धारा - 5 विस्फोटक अधिनियम के तहत मुकदमा पंजीकृत कराया था। घटना बाद तत्कालीन डीजीपी ने भी दौरा कर मुठभेड़ की जानकारी ली थी। घटना को लेकर एसपी पर भी गंभीर आरोप लगे थे।

यही नही यह गुथ्थी आज तक नही सुलझ पायी और रिवाल्बर का पता नही चल सका कुशीनगर की पुलिस उन बदमाशों को खोजती रही और जन्मष्टमी को शहीदों की याद में शहीद दिवस मनाती रही  पर कुछ न हो सका।

और यह गोली काण्ड पचरूखिया कांड के नाम से प्रसिद्ध हो गया। शहीद पुलिस कर्मियों के सहादत पर सदर कोतवाली के मुख्य द्वार पर शहीद द्वार का निर्माण कराया गया है। 26 जनवरी 1995 को इसका लोकार्पण करते हुए तत्कालीन एसपी कमल सक्सेना ने शहीद पुलिसकर्मियों को पुलिस इतिहास में अमर होना बताया।



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