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भगवान बुद्ध की परिनिवार्ण स्थली की सुरक्षा आज भी भगवान भरोसे




कुशीनगर। बोधगया में  हुए सीरियल बलास्ट के आतंकी घटना के बाद भले ही पुलिस और खुफिया एजेंसियों की नींद टूट गयी हो लेकिन वास्तविकता यह है कि कुशीनगर के मंदिरों और पुरातात्विक अवशेषों की सुरक्षा आज भी भगवान भरोसे है।

जिसके प्रति विभाग, प्रशासन या खुफिया एजेंसियों ने कभी कोई गम्भीरता नहीं दिखाई। तथागत की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर में आज भी लगभग एक दर्जन होटल व बुद्ध बिहार हैं जिनका सराय एक्ट में पंजीकरण नहीं हुआ है। यहां आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों का कोई अभिलेख इनके पास उपलब्ध नहीं है।

जिससे यह पता चल सके कि किस देश का कौन सा पर्यटक कब और किस उद्देश्य के लिए यहां आया और यहां की रेकी कितने बार हो चुकी है। अखबारों के माध्यम से ही इस मामले को उठाया गया लेकिन इस पर न तो प्रशासन ने गम्भीरता दिखाई नही पर्यटन विभाग  की इसमें रूची रही।

पुरातत्व विभाग की हालत यह है कि बीते कई वर्षो से उनके अधिकारी यह बयान दे रहे हैं कि परिनिर्वाण मंदिर में सी.सी. कैमरे लगाये जायेंगे। जिसके लिए धन अवमुक्त होने की बात भी उन्होंने स्वीकारी लेकिन इस वर्ष पुनः जब इसके न लगने का कारण पूछा गया तो अधिकारियों ने बताया कि बिजली न रह पाना इसका प्रमुख कारण है।

सीधा मामला बिजली विभाग पर डाल दिया गया। जिसे अब हरहाल में 24 घण्टे यहां बिजली देनी होगी तब जाकर सी.सी. कैमरा लग पायेगा। जो सम्भव नहीं दिखता। महापरिनिर्वाण मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर लिखित निर्देश के बावजूद यहां जब किसी भी विभाग का कोई बड़ा अधिकारी दर्शन के लिए आता है तो सारे नियम ताक पर रखकर मुख्य प्रवेश द्वार खोलकर उनके वाहनों को मंदिर तक पहुंचाया जाता है।

महापरिनिर्वाण मंदिर की उत्तरी सीमा की चाहरदिवारी आज भी पुरातत्व विभाग और कुशीनगर भिक्षु संघ की लड़ाई के चलते नहीं बन सकी है। उधर से कोई भी कभी भी घुस सकता है। लेकिन इस मामले को भी हल कराने में प्रशासन की कोई रूचि नहीं है। पुरातत्व संरक्षण अधिनियम 1955 के प्राविधानों का उल्लंघन तो यहां का प्रशासन ही कराता चला आ रहा है। विनियमित व निषिद्ध क्षेत्रों में हो चुके और हो रहे निर्माण किसके संरक्षण व निर्देश पर हुए या किये जा रहे हैं यह भी सभी जानते हैं। लेकिन सामर्थवान प्रशासन के आगे कोई मुंह खोलना नहीं चाहता है।

पुरातत्व विभाग के पास जांच के नाम पर दो खराब पड़े मेटलडिटेक्टर भी हैं जो शोपीस बने हुए हैं। बीते वर्षो में सुरक्षा के नाम पर यहां पर्यटन पुलिस के सिपाहियों की भर्ती की गयी और उनके साथ होमगार्ड के सिपाही तैनात किये गये। जो सुरक्षा में कम पर्यटकों से वसूली में ज्यादे रूचि रखते हैं।

स्थिति ऐसी है कि कुशीनगर के अधिकांश बौद्ध भिक्षु विदेशी पर्यटकों की टीम को आते देख लालयित हो जाते हैं कि कैसे इनसे अधिक से अधिक चढ़ावा लिया जा सके और इसके लिए वे भगवान बुद्ध की लेटी प्रतिमा को नुकसान पहुंचाने तक पर तैयार हो जाते हैं।

मनाही के बावजूद वे इस पर चीवर चढ़वाते हैं और इसका स्पर्श भी करवाते हैं जिसके रगड़ने से प्रतिमा क्षरित हो रही है। प्रतिमा की सुरक्षा के नाम पर टफेण्ड ग्लास तो लगवा दिया गया लेकिन उसमें भी इस बात का प्राविधान रखा गया है कि आसानी से प्रतिमा पर चीवर चढ़ाया जा सके। कुल मिलाकर चाहे यहां का भिक्षु संघ हो चाहे पुरातत्व विभाग, चाहे पर्यटन हो या प्रशासन कोई भी इसके सुरक्षा के प्रति गम्भीर नहीं दिखाई दे रहा है। 

जिलाधिकारी कुशीनगर रिग्जियान सैम्फिल ने जिले में आते ही मंदिर क्षेत्र के विकास के लिए टेम्पुल एरिया मैनेजमेन्ट कमेटी का गठन किया। जिसके पहले ही बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि बौद्ध संग्रहालय के सामने एक पुलिस बूथ बनाया जायेगा जहां सुरक्षा प्रहरी तैनात किये जायेंगे। लेकिन आज तक इसका क्रियान्वयन नहीं हुआ। उल्टे देखते-देखते रामाभार स्तूप तथा परिनिर्वाण मंदिर के पास निषिद्ध क्षेत्रों में भी अवैध निर्माण जरूर खड़े हो गये।

पुरातत्व विभाग की हालत यह है कि यहां बीते कई महीनों से पुरातत्व संरक्षण सहायक अधिकारियों का कार्यभार ही पूरी तरह ग्रहण नहीं हो पाया और अभी उसी पर ग्रहण लगा हुआ है ऐसे में विभाग का कोई अधिकारी ठीक से विभागीय काम नहीं कर पा रहा है। 





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