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कुशीनगर में एड्स के नाम पर डकार जाती है लाखों रूपये स्वयं सेवी संस्थाए


कुशीनगर । लाईलाज एड्स की रोक थाम में कई संस्थाएं प्रत्येक वर्ष लाखों रूपये डकार जाती है इसके साथ स्वास्थ्य विभाग भी इन्हे नजरन्दाज कर सब कुछ देखता रहता है और योजनाएं धरी की धरी रह जाती है ऐसे में एड्स रोगी बढ़ते जा रहे है। 

यद्यपि एचआईवी संक्रमित और एड्स रोगियों के लिए काम करने वाली जिले में कई संस्थाएं संचालित हैं। ये संस्थाएं संक्रमित रोगियों में जागरूकता बढ़ाने और उनका इलाज कराने का दावा करती हैं। इसके लिए इन्हें लाखों में फंड भी रिलीज होता है। विभाग को पता भी नहीं चलता कि यह कहां काम करती हैं। कितने लोगों को इन्होंने जागरूक किया और कितनों को लाभ पहुंचा?

कुशीनगर जिले में एड्स रोगियों की संख्या विस्फोटक होती जा रही है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले वर्षों की तुलना में प्रत्येक बर्ष इनकी संख्या में बढ़ोत्तरी होती जा रही है। चाहे यह बीमारी के बढ़ते दायरे की वजह से हो या फिर जागरूकता के कारण। लेकिन दोनों ही स्थितियों में मरीजों की बढ़ती संख्या बढ़ती जारही है। क्योंकि ऐसे लोग बीमारी की वजह से न तो सकून से जी पाते हैं और न ही सामाजिक रूप से इन्हें वह सम्मान मिल पाता है।

यही वजह है कि राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण सोसाइटी और राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी की तरफ से ऐसे मरीजों को जागरूक करने के साथ-साथ उनके संपूर्ण इलाज का खर्च मुफ्त दिया जा रहा है। जिले स्तर पर आईसीटीसी, पीटीटीसीटी और एआरटी सेंटर स्थापित किए गए हैं, जहां मरीज की जांच से लगायत इलाज और सलाह का प्रबन्ध किया गया है। 

इसके अतिरिक्त स्वयंसेवी संस्थाओं को भी जिम्मेदारी सौंपी गई है कि जागरूकता के माध्यम से लोगों के दिमाग से न केवल इस बीमारी का डर दूर करें बल्कि इस तरह के संभावित रोगियों को आईसीटीसी सेंटर तक ले जाकर उनकी जांच भी कराएं। 

आश्चर्य की बात है कि जिले में ऐसे कई एनजीओ संचालित हैं, जिन्हें जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल लाखों में फंड रिजीज होते हैं। फिर भी उनकी गतिविधियां 14 जून को स्वैच्छिक रक्तदान दिवस और 01 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस को छोड़कर अन्य किसी दिन दिखाई नहीं देतीं। इस बात की पुष्टि स्वास्थ्य विभाग के नोडल अधिकारी/डीटीओ भी करते हैं।

एक नजर आकड़ों के इस खेल में देख तो एचआईवी संक्रमित रोगियों की संख्या क्रमशः बर्ष 2007 में 88, 2008 में 66, 2009 में 135, 2010 में 120, 2011 में 300, 2012में 400, वही एचआईवी संक्रमित रोगियों की संख्या जनवरी 2013 से जून 2013 तक 223 हो गयी है। 

इस सम्बन्ध में नोडल अधिकारी/डीटीओ आनंद कुमार झा बताते हैं कि इस तरह की संस्थाओं को अपने कार्यक्रमों के बारे में पहले कार्यालय में सूचना उपलब्ध करानी होती है। इसके बाद कार्यक्रम संपन्न होने पर कार्यालय से सर्टिफिकेट लेना होता है। डीटीओ का कार्य इनके कार्यक्रमों का सुपरविजन करना है। लेकिन एनजीओ न तो मीटिंग करते हैं न अपने कार्यक्रमों की जानकारी देते हैं। उनके लिए क्या बजट आता है, क्या योजना है इसकी जानकारी नहीं हो पाती। जहां तक विभाग को बजट मिलने की बात है तो स्वैच्छिक रक्तदान दिवस और विश्व एड्स दिवस पर विज्ञापन और प्रचार-प्रसार के लिए आता है जो काफी सीमित संख्या में होता है। 

वही जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. हरगोविंद वर्मा ने बताते है कि समीक्षा कराई जाएगी और प्रयास किया जाएगा कि जागरूकता कार्यक्रम वृहद स्तर पर चलाया जाए ताकि इस रोग और इसकी रोकथाम के बारे में अधिक से अधिक लोग जान सकें।

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