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अरबों के खर्च के बाद भी कुशीनगर के बन्धों पर बाढ़ का खतरा बरकरार


कुशीनगर । उत्तर प्रदेश में कुशीनगर को नारायणी नदी की बाढ़ से बचाने के लिए अरबों रुपये खर्च होने के बाद भी तटबन्धों के टूटने का खतरा बना रहता है। नदी के किनारे बने बांधों के रखरखाव पर प्रत्येक बर्ष करोड़ों रुपये खर्च कर दिये जाते है । किन्तु  दीर्घकालिक नीति न बनाए जाने के कारण तटबन्ध बचाव के नाम पर आने वाले धन के अधिकांश हिस्से का बंदरबांट हो जाते है  और लोगों को बाढ़ की विभीषिका झेलनी पड़ती है।

ज्ञातव्य हो कि नारायणी नदी नेपाल के वाल्मीकिनगर  बैराज के पास भारत में प्रवेश करती है और बिहार क्षेत्र होते हुए उत्तर प्रदेश के महराजगंज, कुशीनगर हुए पुनः बिहार में प्रवेश कर जाती है। बरसात के समय नदी के बाढ़ का खतरा सर्वथा बना रहता है। नदी के तटबंधों की लंबाई नेपाल में 24 किलोमीटर, उत्तर प्रदेश में 106 किलोमीटर और बिहार में 40 किलोमीटर समेत कुल 170 किलोमीटर है। इन बंधों की मरम्मत के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च होते हैं।

विभागीय आकड़ों के मुताबिक वर्ष 1968-69 में छितौनी बांध, 1971-72 में नौतार बांध, 1972-73 में रेलवे इक्विपमेंट बांध, 1982 में कटाई भरपुरवा बांध, 1980-81 में सीपी तटबंध बांध, 1980-81 में अमवाखास बांध, 1980-81 में अमवा रिंगबांध का निर्माण कराया गया था। इसके बाद 1985 के आस पास पिपरासी रिटायर बांध, अहिरौली-पिपराघाट कट एक और दो, जमींदारी बांध, 1975 में एपी एक्सटेंशन बांध, 1975 में नरवाजोत बांध, 1990-91 में एपी एप्रोच रोड आदि सैकड़ों किलोमीटर लंबे बांध उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से बनवाए गए।

इनमें वर्ष 1968-69 में छितौनी बांध पर 04 करोड़ 68 लाख 82 हजार रुपये, 1971-72 में बने नौतार बांध पर 13 करोड़ रुपये, 1972-73 में बने रेलवे इक्विपमेंट बांध पर 04 करोड़ 64 लाख रुपये खर्च हुए। इस तरह अन्य बंधों के निर्माण में भी करोड़ों रुपये खर्च हुए। कुछ वर्ष पहले तक केवल रख-रखाव में ही छितौनी बांध पर 84 करोड़, नौतार बांध पर 22 करोड़ रेलवे बांध पर साढ़े 66 करोड़ रुपये खर्च हो गये हैं। इस प्रकार बंधों के रख-रखाव पर 50 अरब से ज्यादा रुपये खर्च हो चुके हैं। यदि सही नीति के तहत कार्य हुआ होता तो इतने खर्चे में पक्केे बांध बना दिए गए होते, जिससे हर साल बाढ़ के खतरे से लोगों को निजात मिल जाती। लेकिन होता यह है कि जब बरसात आती है तो अधिकारी और जनप्रतिनिधि सक्रिय होते हैं, धन अवमुक्त होता है, बचाव के लिए थोड़ी सरगर्मियां बढ़ती हैं और फिर मौसम खत्म होते ही सबकुछ दब जाता है।

सहायक अभियंता बाढ़ खंड कुशीनगर उत्कर्ष भारद्वाज का कहना है कि यह नदी अक्सर अपना रुख बदलती रहती है। इसकी धारा बदलने से कटान होता रहता है। ऐसे में सुरक्षा के लिए बांध बनाना पड़ता है। उस पर धन खर्च होता रहता है।

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