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अपने वतन लौटने को बेताब भारतीय कामगार, जान पड़ी संकट में



परिजनों ने गृहराज्य मंत्री से लगायी गुहार


कुशीनगर  । आर्थिक तंगी से जुझ रहे लोग धन कमाने के लिए परदेश तो गये पर आज उनकी हालत खराब हो गयी है। सुरक्षा के नाम पर कोई मदद नही मिल रही है। विदेशी नीतियों के कारण कुशीनगर के सैकड़ों मजदूर भारत आने के लिए तरस गये है। जिसमें खाड़ी देशों के साथ भारत का सहयोगी देश रूस भी शामिल है। 

खाड़ी देश कतर की राजधानी दोहा गये भारत के साढ़े तीन सौ कामगारों का बुरा हाल है। यही हाल रूस का है जहां करीब दो दर्जन लोग बन्धको की जिन्दगी जी रहे है। हालत ऐसी है कि भोजन के लिए तरस गये ये लोग भारत आने को बेताब है पर कोई राह नही मिल रही है ।

परदेश में हो रहे भारतीयों के साथ उत्पीड़न को लेकर बन्धक कामगारों के अभिभावकों ने भारत सरकार को पत्र लिखा है। पत्र के माध्यम से अपना दुखड़ा सुनाते हुए परिजनों ने कहा है कि आजकल भोजन के भी लाले पड़े गये है और सभी अपने घरों को लोैटने के लिए बेताब हैं। सभी वहाँ स्थित भारतीय दूतावास पर पहुंचकर मदद की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन दूतावास से उन्हें कोई आश्वासन तक नही मिल सका है। वहाँ की श्रम अदालत व पुलिस से तो बेचारे पहले ही निराश हो चुके हैं। 

भारत के गृह राज्यमंत्री एवं क्षेत्रीय सांसद आरपीएन सिंह को दिये प्रार्थना पत्र में कुुशीनगर के इन्दर कुशवाहा पुत्र चोकत कुशवाहा ने पीडि़त भारतीयों को रूस से वापस बुलाये जाने की मांग की है। अपने प्रार्थना पत्र में कहा है कि उनके बेटे धम्रेन्द्र (35) के साथ विद्यासागर एवं बनवारी सहित कुल सोलह लोगों की टोली है जो एजेंट द्वारा बताये अनुसार रूस की एक कंपनी में भेजा था कि आप सब वहां पर सिलाई केन्द्र खोलकर इस कमानी के लिए कपड़ा तैयार करेंगे।

जिसके बदले आप सबको मोटी कमाई कंपनी की तरफ से होगी। पीडि़त के प्रार्थना पत्र और कथनानुसार कंपनी में पहुंचने पर इन सोलहों लोगों को उक्त कंपनी स्वामी ने एक छोटे से कमरे में बन्द करके रखा है और भोजन के नाम पर वह खाना सुलभ कराया जा रहा है कि यहां के भिखारी भी नहीं खाते। 

बन्धक बने भारतीयों के परिजनों ने बताया कि दोहा में फसे भारतीय कामगारों में शामिल इस जिले के कसया थाना क्षेत्र बाड़ी पुल चोैराहे के निवासी विजय प्रकाश शुक्ल उर्फ बड़कू शुक्ल का पुत्र प्रशान्त उर्फ प्रिंस भी शामिल है। प्रारंभ के दो महीने ठीक-ठाक बीते, लेकिन उसके बाद दिक्कतों का दौर शुरू हो गया। जिस कम्पनी में ये लोग काम करने गये थे ,उसने अपना काम समेट लिया है।

 इसके साथ ही इन कामगारों के ठिकाने पर पानी व विजली किल्लत शुरू हो गयी है। भोजन भी बमुश्किल एक ही वक्त मिल पा रहा है, वह भी खाने योग्य नहीं रहता । फिर भी जैसे- तैसे उसे निगल कर ये लोग अपना पेट भरते हैं। कई महीनों से इन कामगारों को मजदूरी के नाम पर फूटी कोैड़ी भी नहीं मिल सकी है। 

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