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सुप्रीम कोर्ट के आदेश तोड रहे प्रदेश सरकार व प्रशासन के सामने दम



सचिन धीमान
मुजफ्फरनगर। देश के अंदर प्रशासन तथा प्रदेश सरकारों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी कोई औचित्य नहीं रखते है। राज्य सरकारों व प्रशासन द्वारा विगत दिनों सुप्रीम कोर्ट ने दिये गन्ना मूल्य बढोत्तरी के किसानों के भुगतान को 7 जुलाई 2012 तक तीन किस्तों में अदा करने के आदेश के बाद भी किसानों का गन्ने का भुगतान चीनी मिलों द्वारा न कराये जाने से स्पष्ट प्रतीत होने लगा कि प्रदेश सरकारे तथा देश का प्रशासन सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को मानने तक तैयार नही है और वह खुलेआम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उडा रहे। गन्ना मिलों पर अभी भी किसानों का 22 करोड रूपये का बकाया है लेकिन गन्ना मिले सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी किसानों के बढे हुए गन्ने का भुगतान करने को तैयार नहीं है। 

चीनी मिलों द्वारा किसानों का बढा हुआ गन्ना मूल्य न दिये जाने से क्षुब्ध होकर राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता सरदार वीएम सिंह ने राज्य सरकारों व प्रशासन द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना किये जाने के विरूद्ध न्यायालय में जाने का विचार बना लिया है। वह एक सप्ताह के अंदर कोर्ट में याचिका दायर करेंगे। इस बार राज्य सरकारों व प्रशासन को कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के आदेशांे की अवमानना किये जाने का जवाब भी देना पडेगा।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में चीनी मिल मालिकों द्वारा वर्ष 2011-12 में किसानों को गन्ना मूल्य 145 रूपये प्रति कुन्तल की दर से एफआरपी देने की गुहार लगाई थी जिसके खिलाफ हमेशा की तरह किसानों की आवाज को बुलंद कर सडाकों से कोर्ट तक लडाई लडने वाले किसानों के मसीहा तथा राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता सरदार वीएम सिंह ने किसानों की ओर से पैरवी करते हुए किसानों को 240 रूपये प्रति कुन्तल की दर से गन्ना भुगतान दिलाये जाने की अपील की थी .

जिस पर सुनवाई करते हुए विगत 20 अपै्रल 2012 कोे सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2011-12 के गन्ने का रेट 145 रूपये कुन्तल से बढाकर 240 रूपये प्रति कुन्तल के गन्ने का किसानों को भुगतान किये जाने के आदेश पारित कर राज्य सरकारों व प्रशासन को बढेे हुए गन्ना मूल्य का भुगतान तीन किस्तों में 7 मई, 7 जून व 7 जुलाई 2012 तक समस्त चीनी मिलों से भुगतान कराये के जाने के आदेश राज्य सरकारों व प्रशासन को दिये थे। चीनी मिलों को गन्ना किसानों को 240 रूपये प्रति कुन्तल की दर से 54 करोड रूपये का भुगतान करना था।

 परंतु सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार सात जुलाई 2012 बीत जाने के बाद भी चीनी मिलों द्वारा किसानों के गन्ने का बढा हुआ समस्त भुगतान आज तक भी नहीं किया गया है। चीनी मिल मालिकों द्वारा 7 जुलाई 2012 तक 32 करोड रूपये का बढे हुए गन्ना मूल्य का भुगतान किया गया है जबकि अभी भी राज्य सरकारे व प्रशासन चीनी मिलों से किसानों का 22 करोड रूपये का भुगतान नहीं कराया है।

 अभी भी चीनी मिलों पर किसानों का 22 करोड रूपये का भुगतान शेष है। जिससे स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि राज्य सरकारे व प्रशासन ने चीनी मिलों मालिकों से मिलीभगत कर किसानों का बकाया गन्ने का भुगतान नहीं दिला रही है। जिस कारण राज्य सरकारे व प्रशासन सप्रीम कोर्ट के आदेशों की खुलेआम धज्जियां उडाते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना की है। राज्य सरकारे व प्रशासन के सामने सुप्रीम कोर्ट के आदेश दम तोड रहे है राज्य सरकारे व प्रशासन सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं कर रहे है जिसके कारण किसानों को भारी नुकसान पहुंच रहा है।

राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता सरदार वीएम सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि गन्ना किसानों का चीनी मिलों ने अभी तक 54 करोड में से 32 करोड रूपये का भुगतान किया है जबकि किसानों का अभी भी 22 करोड रूपये चीनी मिलों पर शेष है जिसे राज्य सरकारे व प्रशासन ने विगत सात जुलाई 2012 तक सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद भी किसानों को नहीं दिलाया है।

 उन्होंने बताया कि वह राज्य सरकारों व प्रशासन द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना करने के कारण एक सप्ताह के अंदर कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की कि गई अवमानना के खिलाफ कोर्ट में जायेंगे और किसानों का चीनी मिलों पर शेष बकाया 22 करोड रूपये का भुगतान मय ब्याज के दिलाये जाने की मांग की जायेगी और सात जुलाई तक तीन किस्तों में राज्य सरकारों व प्रशासन द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के वावजूद भी गन्ने का किसानों का भुगतान चीनी मिलों से न कराये जाने का जवाब भी मांगा जायेगा।

 उन्होंने बताया कि चीनी मिलों को किसानों को गन्ना मूल्य का भुगतान न किये जाने पर 15 प्रतिशत ब्याज की दर से भी भुगतान करना होगा जिसकी भी कोर्ट में मांग की जायेगी। उन्होंने बताया कि 22 करोड रूपये पर किसानों का चीनी मिलों पर करीब 300 लाख रूपये का ब्याज बैठेगा।

( यह  समाचार सम्वाददाता  की निजी सोच है प्रेस का इससे सहमत होना जरुरी नही है )

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