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कठवसिया देवी का अस्तीत्व खतरे में, सरक्षण के अभाव में हो रहा क्षरण


कुशीनगर । उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में आज भी ऐसी दीर्घ कालीन सभ्यताओं के अवशेष मिल रहे है जो प्राचीन समयों में विद्यामान थे। कुशीनगर से पूरब दिशा में एक ऐसा ही अवेशष है जो संरक्षण के अभाव में अपनी पहचान धीरे-धीरे खो रहा है।

वैसे कुशीनगर तथागत महात्मा बुद्ध व महाबीर स्वामी के परिनिवार्ण स्थली के रूप में प्रसिद्ध है। इसके अलावे कुशीनगर के इर्द गिर्द तमाम ऐसी सम्यताओं ने विकास किया जिनका उल्लेख तमाम ग्रन्थों में मिलता है। इन प्राचीन सभ्यताओं के अशेष आज संरक्षण के अभाव में समाप्त हो रहे है। आज भी कई ऐसे स्थल हे जिन पर पूरातत्व विभाग ने कार्यवाही करना का विचार तो बनाया पर आज तक कुछ नही कर सका।
 

कुशीनगर के तमकुहीराज तहसील क्षेत्र में  बरवा राजापाकड़ स्थित एक स्थान है जो करीब 3 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां पांच वृक्षों के मध्य कठबसियां देवी के नाम से प्रसिद्ध एक पिंडी स्थापित है वही इसके पश्चिम में बरम बाबा का स्थान है।इस भू खण्ड पर ऐसे तमाम अवशेष विखरे पड़े है जो अति प्राचीन सभ्यता की निशानदेही रखते है।

 इसके 200 मीटर के दायरे में चार कुओं का अस्तित्व यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि यहां किसी समृद्धशाली एवं विकसित सभ्यता का अस्तीत्व था। दो कुएं पाट दिये गये हैं शेष दो में से एक में आज भी पानी मौजूद है।इसकेे पश्चिम 300 मीटर की दूरी पर करीब 50 एकड़ क्षेत्र में चंवर स्थित है, माना जाता है कि चंवर की मिट्टी का इस सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है।
 

ग्रामीण बताते है कि यहां विकसित चेरो जाति की बस्ती थी, जिनका संबंध पलामू एवं रोहतास के चेरो राज घरानों से था समृद्ध शाली एवं सम्पन्न चेरो प्लेग जैसी किसी आपदा के चपेट में आ जाने के कारण यहां से नेपाल की तरफ पलायन कर गये। पलायन के पूर्व वे कीमती धातु की सम्पत्ति को एक जंजीर से बंधे सात बड़े घड़ों में बंद कर जमीन में दफन कर दिये और तत्कालीन परंपरा अनुसार इसकी सुरक्षा हेतु देवी की प्राण प्रतिष्ठा कर गये। 

कालांतर में इस स्थान पर कठबांसी (बांस की एक प्रजाति) का जंगल उग आया बाद में लोगों ने जंगल की साफ-सफाई की तो उन्हें देवी और बरम बाबा की पिंडी मिली जो आस्था का केन्द्र है। खेत की जुताई के दौरान जमीन के नीचे पुराने जमाने के बड़ी ईटों से निर्मित नींव, नाद, नाली, खपरैल आदि के अवशेष अक्सर मिल जाया करते है। यह अति प्रचाीन अवेशष संरक्षण के अभाव में विघटित होने लगे है। ग्रामीणों की मांग हे कि इसे अतिशीघ्र संरक्षित कर इस क्षेत्र की खुदायी करायी जाये।

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