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,जनपद में धडल्ले से हो रही खुले खजाने की लूट

                                                          सूखने लगी किसानों की फसल
                                               
                                      नजरे उठाये आसमान की ओर देख रहे किसान
सचिन धीमान
मुजफ्फरनगर। पर्यावरण के लिए अति आवश्यक जनपद मुजफ्फरनगर में जंगलों का क्षेत्रफल घटता ही जा रहा है और अवैध कटाई के चलते इस खुले प्राकृतिक खजाने को लोग धडल्ले से लूट रहे है। जनपद मुजफ्फरनगर में पर्यावरण की स्थिति इतनी खतरनाक स्तर पर पहुंच गयी है कि इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रतिवर्ष वर्षा और नमी के लिए प्रसिद्ध जनपद मुजफ्फरनगर में लू और गर्म हवा के थपेडे गर्मी माह के मई जून में चलते थे लेकिन इन दिनों श्रावण माह में जहां तेज वर्षा के साथ साथ बारिस की हलकी फुलकी बौछारे होती रहती थी।

वहीं आज जनपद में चल रही तन को झुलसा देने वाली गर्म हवाओं ने आम जनजीवन प्रभावित कर दिया है वहीं दूसरी ओर जनपद की धरती पर खडी हरी-भरी फसल भी वर्षा न होने के कारण मुरझाने लगी है और जनपद के किसान भी आसमान की तरफ नजरे उठाये इन्द्रदेव के अपने ऊपर मेहरबान होने का इंतजार कर रहे है लेकिन शायद आज यह इंसान की कर्मों का ही फल है कि आज इन्द्रदेव जनपदवासियों से रूठे हुये दिखाई देने लगे है क्योंकि श्रावण माह में महाशिवरात्रि पर भी वर्षा न होने से लोगों में बेचेनी होनी शुरू हो गयी है।

 इसके अलावा जनपद के नहरी इलाकों में जहां पर धरती में नमी की परत ज्यादा होती थी आज वहां की भूमि का उपजाऊपन निरंतर घटता जा रहा है और भूमि रेतीले कणों की मात्रा में तेजी से वृद्धि हो रही है। जनपद में धडल्ले के साथ हो रही हरे-भरे पेडों की कटाई के कारण जनपद का पर्यावरण दूषित हो जा रहा है। जिस कारण लोगों को स्वच्छ सांस लेना भी मुश्किल पैदा हो रही है। इसी कारण जनपद में अधिकांश सांस,फेफडों से संबंधित बीमारियां तेजी के साथ अपने पैर पसार रही है। जनपद में पिछले दो-तीन वर्षों के अंदर सांस, फेफडे, हृदय, कैंसर आदि खतरनाक बीमारियों के मरीजों की संख्या में बढोत्तरी हुई है।

लेकिन जनपद का वन एवं पर्यावरण विभाग सब कुछ जानते हुए भी आज मौन है क्योंकि नोटों की चमक ने सबको अंधा कर दिया है और जनपद में धडल्ले के साथ हरे-भरे पेडों की कटाई चल रही है जिस कारण जनपद में हरे-भरे बागों में तेजी से गिरावट आ रही है।


जनपद में लकडी माफिया ग्रामीणों को बहला फुसलाकर उन्हें लालच देकर उनके द्वारा अपने खेतों में लगाये गये कम उम्र के फलदार पेडों का सौदा कर खरीद लेते है और ये लकडी के सौदागर अपनी चांदी काटने के लिए वन विभाग के अधिकारियों से कम पेडों के कटान की प्रमिशन लेकर ज्यादा पेडों का कटान धडल्ले के साथ करते है।

जबकि जनपद का वन विभाग प्रमिशन देते हुए इस बात की भी जांच नहीं करता है कि वह जिन पेडांे के बाग के कटान की प्रमिशन दे रहा है वह कम उम्र के फलोदार पेडों का बाग है या बिना फलदार पेडों का। परंतु वन विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों को तो नोटों की चमक में कुछ भी दिखाई नहीं देता है और वह किसी भी आम, अमरूद, नाशपाती आदि फलदार पेडों के बागों की कटाई की अनुमति दे देते है।

 इस अनुमति की आड में लकडी माफिया चांदी काटने से नहीं चूकते है और वह विभाग से 10 पेडों के कटान की प्रमिशन लेकर कटाई शुरू करत है तो वह 50 पेडों का कटान कर डालते है लेकिन इस ओर कोई अधिकारी या कर्मचारी कोई कार्यवाही नहीं करता है। जिस कारण आज जनपद का पर्यावरण दूषित हो जा रहा है। तेजी के साथ बढते औद्योगिक कल कारखानों व ईंट भट्टे सहित अनेक औद्योगिक संस्थानों की चिमनियों से निकलने वाला जहरीला पदार्थ हवा में घुल जाता है और पेड पौधों में हो रही कमी के कारण यह जहरीला पदार्थ ही हम स्वयं सांस के साथ अपने शरीर में पहुंचा रहे है।

इतना ही नहीं वहीं दूसरी ओर बाजारों में ज्वलनशील ईधन से चलने वाले वाहनों से निकलने वाले जहरीरे पदार्थ से भी लोगों को बीमारियों का शिकार होना पड रहा है लेकिन अपनी सुख सुविधओं के पीछे दौड रहे लोगों का इस ओर कोई ध्यान नहीं है और इंसान जाने अनजाने में अपने आपको मौत के मुंह में धकेल रहा है। जबकि जनपद का पर्यावरण विभाग भी इस ओर से आंखे मूंदे बैठा है और प्रदूषण पर कोई नियंत्रण नहीं कर पा रहा है।

जनपद के वनांें व हरे-भरे पेडों पर लकडी माफियाओं की बुरी नजर लग गयी है जिस कारण पिछले कई वर्षों से जनपद के समस्त फलदार बागों सहित पेडों का सफाया हो गया है और इसी कारण पिछले दो वर्षो से जनपद में वर्षा कम होने के कारण जनपद की सोना उगाने वाली धरती में रेतिले कणों की मात्रा बढने लगी है और इसी के साथ धरती की उपजाऊ क्षमता बहुत कम होने के कारण पैदावार भी कम होने लगी है।

इसके साथ ही जनपद में इन दिनों श्रावण माह के जहां प्रत्येक वर्ष भारी वर्षो के कारण नदियों में पहाडों से आने वाले पानी से बाढ की स्थिति पैदा हो जाती थी तथा बाढग्रस्त क्षेत्रों में त्राहि-त्राहि मची रहती थी वहीं आज जनपदवासी वर्षा के पानी की एक-एक बूंद को तरस रहे है।

इन दिनों जनपद की धरती पर पानी की बूंदों से तरस रहे लोगों को मई-जून माह में पडने वाली लू के थपेडों व तन को झूलसा देने वाली गर्मी का सामना करना पड रहा है। श्रावण माह के 15 दिन बीत जाने के बाद भी वर्षा न होेने के साथ ही महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर भी इन्द्रदेव द्वारा वर्षा न किये जाने से लोगों में चिन्ता का विषय बन गया है।


 जनपद में किसानों की हरी-भरी फसले भी वर्षा न होने के कारण मुरझाने लगी है। फसलों को मुरझाता देख किसानों के चेहरों से रौनक भी उड गयी है। किसान सुबह से शाम तक आसमान की तरफ नजरे टिकटिकाये बादलों के आने का इंतजार कर रहा है। लेकिन वर्षा न होने के कारण जनपद की नदियों तक सूखी हुई है यहां तक की गांव में तालाब भी सूखे हुए है। तालाबों में मछली पालन करने वाले लोगों को भी भारी दिक्कतों का सामना करना पड रहा है।

वहीं दूसरी ओर बडे बुर्जुगों का कहना है कि पेडों को हो रहे अंधा-धूंध कटानों के कारण पर्यावरण का संतुलन बिगड गया है और पर्यावरण के इस संतुलन के बिगडने के कारण भी वर्षा कम हो रही है। क्योंकि वर्षा होने में पेड भी बहुत ही ज्यादा सहायक सिद्ध होते है क्योंकि पहाडी इलाकों सहित वनीय क्षेत्रों में वर्षो बहुत ज्यादा होती है।

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