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संस्कृत भाषा के बिना भारतीय संस्कृति की परिकल्पना सम्भव नही- शिवजी त्रिपाठी


उत्तर प्रदेश में 1983 के बाद कोई भी संस्कृत विद्यालय नही हो सका अनुदानित

   शिक्षकों की कमी सबसे बड़ी समस्या, बन्द होने कगार पर विद्यालय


कुशीनगर । उत्तर प्रदेश में संस्कृत विद्यालयों की स्थिति दिन प्रति-दिन खराब होती जारही है। अध्यापको की कमी से विद्यालय बन्द होने के कगार पर है। उधर भारतीय संस्कृति के धावक संस्कृत भाषा को जीवित रखने वाले 1983 के बाद किसी भी संस्कृत विद्यालय को अनुदानित न करना उत्तर प्रदेश ही नही पूरे भारत वर्ष के लिए चिन्ता का विषय बन गया है।

अगर यह कहा जाय कि संस्कृत भाषा के बिना भारतीय संस्कृति की परिकल्पना नही की जा सकती है।तो इसमें कही कोई अतिश्योंक्ति नही होगी। संपूर्ण विश्व भारतीय संस्कृति की ओर अग्रसर दिख रहा है। परंतु हमारे देश में ही देववाणी संस्कृत के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है।

उक्त बातें उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षक कल्याण समिति के कुशीनगर महामंत्री शिवजी त्रिपाठी ने एक प्रेस वार्ता में कही। उन्होंने कहा कि आज सिथति ऐसी है ंकि संस्कृत शिक्षकों के प्रति कोई भी सरकार जागरूक नही दिख रही है। लम्बित मामले का निराकरण अब असान नही रह गया है लेकिन एक संरकार है जो आज भी संस्कृत को सम्मान देती है।

इस विषम परिस्थिति में भी फरवरी 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 246 संस्कृत विद्यालयों को अनुदान पर लेने की घोषणा की थी। इसके साथ कई कार्यो पर भी सपा की सरकार ने संस्कृत के लिए बहुत कुछ किया। आज संस्कृत शिक्षक जो सुविधा पा रहा है वह भी कही न कही सपा सरकार ने ही दिलाया है ।

दुर्भाग्य तो तब आया जब अगली सरकार बसपा की हो गई और संस्कृत के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि अनुदान की लम्बित पड़ गयी। पुन सपा की सरकार आई जिससे संस्कृत विद्यालयों के शिक्षकों में आस जगी। पिछले सप्ताह प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन भी अगुवाई में शासन स्तर के संस्कृत प्रतिनिधियों के साथ सार्थक वार्ता संपन्न हुई जिसमें मंत्री ने संस्कृत शिक्षक प्रतिनिधियों को आश्वस्त किया कि होने वाली मंत्रिमंडल की बैठक में इसकी पुष्टि करा कर प्रत्येक दशा में 246 संस्कृत विद्यालयों की अनुदान सूची निर्गत कर दी जाएगी। अब फिर कुछ आश जगी है कि हमारे संस्कृत शिक्षकों के सपने सुनहरे हो जायेगे।

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