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कुशीनगर में जारी है पानी का ताण्डव मर रही जनता



  • पाच बर्ष पूर्व हुयी थी ऐसी एक घटना जिसमें 50 की हो गयी थी मौत


कुशीनगर । उत्तर प्रदेश के उत्तरी पूर्वी छोर पर बसे कुशीनगर में एक के बाद एक करके करीब 5 दर्जन बच्चों की मौत हो गयी और प्रशासन कुछ नही कर सका। अभी भी ये मौत का ताण्डव जारी है प्रशासन केवल खाना पूर्ति ही कर रहा है।

इस कुशीनगर का भविष्य क्या होगा और आने वाले दिनों में यहां लोग जी पायेगें भी या नही यह कह पाना कठिन सा लगने लगा है। वैज्ञानिक कह रहे कि जिस प्रकार पानी न होने से जीवन असम्भव है उसी क्रम में यह भी तय है कि दुषित पानी से भी जीवन सम्भव नही हो सकता है। 

आज कुशीनगर में प्रदूषित पानी एक घातक समस्या बन कर उभरने लगी है। नक नजर खोटही पर डाले तो अचानक खोटही गांव में एक के बाद एक 50 बच्चों की मौत होने लगी । बाद में पता चला की उनकी किसी ने हत्या नही की पर वेे बच्चे अपने गांव का दूषित पानी पीने को मजबूर थे।

कुशीनगर में ये हादसा पांच साल पहले हुआ था। इस घटना के बाद प्रशासन ने साफ पानी के लिए टंकी बनाने का फैसला किया। लेकिन कुशीनगर में 2006-2007 में अज्ञात बीमारी के कारण करीब 50 बच्चों की मौत के बाद भी हालात अब भी ज्यादा नहीं बदले हैं। आज भी इस इलाके के साथ-साथ कुशीनगर जिले के तमाम गांवों के ज्यादातर बच्चे पेट से जुड़ी बीमारियों से परेशान हैं।

6 साल पहले जब कुशीनगर के खोटही गांव में जहां एक महीने के अंदर में करीब 50 बच्चों की मौत हुई थी तो उसके लिए खूब हो हल्ला हुआ था। मंत्रियों ने दौरे किए और डाक्टरों की टीम दौड़ी, जांच में बीमारी का पता ही नहीं चला, इसे अज्ञात बीमारी का नाम दे दिया गया। 

फिर भी रिपोर्ट में डाक्टरों ने बताया कि यहां पर पानी पीने लायक नहीं है और ये दूषित हो चुका है। आज यही हाल पुरे जिले का है। हर गांव में दूषित पानी ही सेवन के लिए लिया जा रहा हैं। जो लोग बडे़ और सम्पन्न है वह तो पानी को फिल्टर या गर्म करके उपयोग में ले लेते है। जब कि यह सबके बस की बात नही है। 

एक शिक्षक शिवजी त्रिपाठी बताते है पानी की समस्या से लोग काफी परेशान हैं। प्रत्येक व्यक्ति यह कह दे कि वह पेट की बीमारी से सुरक्षित है तो यह गुजरे जमाने की बात होगी। आज कुशीनगर के लगभग 80 प्रतिशत बासिन्दें पेट की बीमारी से ग्रसित है। मुझसे कोई पुछता है तो मैं तो यही राय देता हूं की भाई गर्म पानी या फिलटर का पानी पीयों नही तो साल के सात महिने तुम्हे पेट की दवा कराने में लग जायेगे

वही एक रिक्शा वाला समसुद्दीन बताता है कि साहव यह मेरे लिए सम्भव नही है कि मै फिल्टर का पानी पीयुॅ  मेरी आया उतनी नही कि यह सम्भव हो मैने दो महिने पहले पानी का एक बोतल खरीदा था जो 25 रूपये में मिला था। प्रतिदिन खरीदना तो सम्भव नही है ऐसे मेरी बीवी नाजिया पानी गर्म कर देती है हमारा परिवार उसी पानी को छान कर पीता है। इसकी राय एक डाक्टर ने दी थी जब नाजिया बीमार थी।

ऐसे में अगर यह कहा जाये कि जिनकी आय 120 प्रति दिन हो तो वह क्या करेगा। कितना पानी पर और कितना अनाज पर खर्च करेगा। यह सोचनीय विषय बन गया है। स्थिति ऐसी है कि कब किस गांव में ये मौत का ताण्डव शुरू हो जायेगा। कोई कुछ नही कह सकता।

उधर इसके बाद सरकार ने इलाके में आला दर्जे के हैंडपंप लगाए और फैसला लिया कि करीब करोडों़ रुपये की लागत से पानी की टंकी का निर्माण किया जाएगा। अप्रैल 2010 में जल निगम को पानी की टंकी बनाने का जिम्मा दिया गया। 850 किलोलीटर पानी की क्षमता वाली टंकी को मार्च 2012 तक तैयार हो जाना चाहिए था। लेकिन यहां पर इन दो सालों में सिर्फ बोरिंग और टंकी बनने वाली जगह पर बाउंड्री वाल का काम हुआ है। लेकिन पानी की टंकी कब बनेगी ये किसी को नहीं पता।

खोटही ही नही कुशीनगर में ऐसे तमाम गांव है जहां आज मां की पेट से पैदा होने वाला बच्चा भी पेट की बीमारी से प्रभावित हैं हर वह घर जिसके पास फिल्टर नही उसके बहां करीब 10 रूपये गैस आदि की दवा प्रत्येक दिन नियमित रूप से ली जाने लगी है। 


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