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गुमनामी बाबा की पहचान के लिए टीम गठन के लिए निर्णय ले सरकार




इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश   इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार को फैजाबाद के गुमनामी बाबा उर्फ भगवान जी की पहचान की जांच के लिए एक कमेटी गठित करने पर विचार करने को कहा है।

गुमनामी बाबा के बारे में कई लोग दावा करते हैं कि नेताजी सु भाष चंद्र बोस ही गुमनामी बाबा थे। जस्टिस देवी प्रसाद सिंह और जस्टिस वीरेंद्र कुमार दीक्षित की खंडपीठ ने दो अलग अलग रिट याचिकाओं की सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया।

ज्ञातव्य हो कि हाई कोर्ट में याचिका दायर करने वालों में से एक नेताजी की भतीजी ललिता बोस और दो अन्य लोग थे। आमतौर पर माना जाता है कि नेताजी की मौत 18 अगस्त, 1945 को एक वायुयान दुर्घटना में हो गई थी. लेकिन कई लोग इस पर यकीन नहीं करते। इससे पहले कलकत्ता हाईकोर्ट में भी इस संबंध में याचिका दायर की गई थी और इसके बाद अदालत के निर्देश पर गठित एक आयोग ने इस मामले की जाँच की थी। अब तक की गई किसी भी जाँच में ये साबित नहीं हो सका है कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी।

गुमनामी बाबा उर्फ भगवानजी फैजाबाद के राम भवन में रहते थे. 18 सितंबर 1985 को उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया था। जिसके सम्बन्ध में याचिका पर फैसला सुनाते हुए खंडपीठ ने राज्य सरकार को फैजाबाद में स्वर्गीय गुमनामी बाबा से जुड़ी चीजों को रखने के लिए एक संग्रहालय बनाने पर विचार करने का भी निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि और भी पुरानी वस्तुएं किसी काबिल व्यक्ति की निगरानी में वैज्ञानिक तरीके से इस संग्रहालय में रखी जा सकती हैं। कोर्ट ने म्यूजियम बनाने पर भी राज्य सरकार को तीन महीने के भीतर फैसला लेने के लिए कहा है। खंडपीठ ने अपने एक अन्य आदेश में राज्य और केंद्र सरकार को मुखर्जी कमीशन द्वारा ली गई गुमनामी बाबा की सभी चीजें फैजाबाद के कोषागार में जमा कराने का निर्देश भी दिया। जिसे बाद में म्यूजियम को सुपुर्द कर दिया जाना चाहिए।

इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ का आदेष

खंडपीठ ने कहा, स्वर्गीय गुमनामी बाबा की पहचान के सिलसिले में हाई कोर्ट के एक सेवानिवृत जज के नेतृत्व में वरिष्ठ अधिकारियों और विशेषज्ञों की एक टीम के गठन पर विचार करने का राज्य सरकार को यह निर्देश दिया जाता है। खंडपीठ ने कहा, कि इस मामले में तीन महीने की अवधि के भीतर अविलंब निर्णय लिया जाए।

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