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कुशीनगर में फिसल रहा है पर्यटन उद्योग, नही मिला कोई सहारा

टाईम्स आफ कुशीनगर व्यूरों
कुशीनगर। देश की मुद्रा में अपनी बेहतर सहभगिता निभाने वाला पर्यटन उद्योग कुशीनगर में फिसलता नजर आ रहा है। इसके सहारे के लिए कुशीनगर में अब तक जितनी भी परियोजनाए रही किसी का उन्नयन नही हुआ। कुछ नयी भी आयी वे भी अपने अस्तित्व में आने के लिए तरसती रह गयी। जनता तो अब आदी हो चूकी है। पहले इनके बारे में पुछती थी, अब उसे भी सब छलवा ही नजर आ रहा है।

शान्ति और अहिसां का उपदेश देने वाले भगवान बुद्ध ने इस धरती पर अपनी अन्तिम सांस ली। कनिंघम के खोज के बाद के यह धरती बौद्ध धर्मावलम्वियों के लिए तीर्थ बन गयी। इसके साथ भगवान बुद्ध से जुड़े सभी स्थलो का बौद्ध अनुयायियो के लिए महत्व बढ़ गया। कुशीनगर के साथ सारनाथ, बोधगया, संकिशा, श्रावस्ती व नेपाल में स्थित लुम्बनी में बौद्ध अनुयायियों के आने का सिलसिला तेज हो गया और इन तीर्थो के प्रति लोगों का रूझान बढ़ने लगा। इसकों देखते हुए प्रदेश और केन्द्र की सरकारों ने इन क्षेत्रों में पर्यटन की अपार सम्भावनाओं को तलाशा और इन क्षेत्रों को विकासित करने के लिए मन बना लिया। इन सभी बौद्ध तीर्थो को बौद्ध सर्किट के रूप में विकसित करने की योजना बना ली गयी। उसके बाद इन क्षेत्रों में तमाम परियोजना लायी गयी और वह विकसित होती गयी। लेकिन  महापरिनिवार्ण स्थली कुशीनगर में पर्यटन के विकास की कई योजनाएं आयी पर लंबे समय से परवान नहीं चढ़ पायी।

कुशीनगर में प्रस्तावित मैत्रेय परियोजना हो, इंटरनेशनल एयरपोर्ट का निर्माण या फिर बॉटलिंग प्लांट लगाने की योजना रही ये सभी परियोजनाएं सिर्फ फाइलों तक ही सिमट कर रह गई हैं। अधर में पड़ी इन परियोजनाओं को लेकर लोग सरकार को ही जिम्मेदार रहे हैं। लोगों का मानना है कि सरकार की इच्छाशक्ति की कमी की वजह से ये सभी योजनाएं हवा हवाई साबित हो रही हैं। अगर देखा जाये तो कुशीनगर में मैत्रेय परियोजना की शुरुआत 2001 में शुरू हुई जब अफगानिस्तान के बामियान में बुद्ध की सबसे ऊंची प्रतिमा को तालिबान आतंकवादियों ने तोड़ दिया था। इस परियोजना में बुद्ध की 500 फुट ऊंची प्रतिमा बनायी जानी थी। इसके इर्द-गिर्द विश्वस्तरीय चिकित्सा व मेडिटेशन सेंटर समेत कई शैक्षणिक केंद्र भी खोले जाने की योजना थी। सरकार को परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी करने में पांच वर्ष लग गए। 2006 में अधिग्रहण की अधिसूचना जारी हुई तो लोगों को लगा कि अब यह परियोजना जल्दी पूरी हो जाएगी। इस बीच सरकार कई वर्षो तक किसानों के साथ जमीन विवाद में फंसी रही। उसके बाद किसी तरह से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दिसंबर 2013 में परियोजना का शिलान्यास किया और उसका रूप बदल गया।  प्रतिमा की ऊचाई घट कर 200 फीट हो गयी। उसके बाद आस जगी कि अब यह स्थापित हो जायेगी। आफसोस कि एक वर्ष बाद अब जाकर सरकार ने मैत्रेय संस्था से नवीन करार किया है। यही हाल कुशीनगर में बनने वाले अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे की परियोजना की है। यह भी अधर में लटकी हुई है। सरकार ने एयरपोर्ट संचालन के लिए केंद्र से होने वाली सभी औपचारिकताएं भी पूरी कर लीं, पर पीपीपी मॉडल के तहत बनने वाले इस एयरपोर्ट के निर्माण व संचालन के लिए कंपनियां ढूढ़े नहीं मिली। विभागीय सूत्र बताते है कि अब विभाग ने एयरपोर्ट अथार्टी आफ इण्डिया को पत्र भेज कर हवाईअड्डा के निमार्ण का अनुरोध किया गया है। इसके अलावा कुशीनगर को टियर टू शहर से महानगरों सरीखे शहरों की कतार में लाने के लिए कुशीनगर विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण की स्थापना की गई। पर विकास के लिए बनी महायोजना 2031 अभी स्वीकृति के दौर से गुजर रही है। एक दशक से प्राधिकरण उधार के कार्यालय और उधार के कर्मचारियों के भरोसे चल रहा है। वाटलिंग प्लाट की स्थिति वही है। अभी भी इप्ररियोजना जमीन पर नही उतर सकी है।

स्थित तो ऐसी हो गयी है कि प्रदेश गये गांव और शहर के जान पहचान वाले पहले इन परियोजनाओं के बारे पुछा करते थें। कि क्या हुआ ? अब वह भी इसकी हाल नही पुछते, क्योकि उनको भी लग रहा है कि बर्षो से अधर में लटकी ये परियोजनाओं इतनी जल्दी पूरी होने वाली नही है। परियोजनाओं के पूरा न होने का सरकार उदासीनता ही मान रहे है। शिक्षक, डाक्टर और ही नही छात्र भी इन परियोजनाओं के पूरा होने की राह देख रहे है। डॉ. ओ पी मल्ल की मानें तो तमाम ऐसे देश है जहां पर्यटन रोजगार व आर्थिक विकास का बेहतर जरिया हैं। भारत के ही कई राज्य पर्यटन के सहारे विकसित राज्यों की श्रेणी में खड़े हैं। शिक्षक शिवजी त्रिपाठी का कहना है कि कुशीनगर की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और भौगोलिक विरासत पूरी तरह से पर्यटन विकास के अनुरूप है, यहां परियोजनाएं स्थापित हो जाये तो निश्चित ही पर्यटन उद्योग सबल होगा।

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