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बौद्ध दर्शन के लिए थाईयो को लेनी पड़ती है दीक्षा

टाइम्स ऑफ़ कुशीनगर ब्यूरो 
कुशीनगर । बौद्ध धर्म की बढ़ती ख्याति ने भगवान बुद्ध की परिनिवार्ण स्थली कुशीनगर का महत्व और भी बढ़ा दिया है। इस पनिरिनिवार्ण स्थली के दर्शन के लिए प्रत्येक बौद्ध अनुयायी आतुर रहता है। ऐसे में थाईबौद्ध अनुयायियों को कुछ विशेष त्याग करना पड़ता है। जिसके लिए उसे पहले दीक्षा लेनी पड़ती है और उसके बाद वह भिक्षु का जीवन जीना शुरू कर देता है। 

बौद्ध धर्म के अनुसार बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणी का अपना अलग महत्व है। थाईलैण्ड के बौद्ध अनुयायियों को भगवान बुद्ध के दर्शन से पूर्व दीक्षा लेनी पड़ती है। उसके बाद से भिक्षु के रूप में वह अपने धर्म यात्रा के दौरान भिक्षु के आचारण को पूरी तरह से पालन करता है। थाईलैंड सरकार की 360 महिला अधिकारियों ने भी ऐसी ही पहले दीक्षा ली उसके बाद से विशेष पुजा में शामिल हुयी। इसके बाद वे पुनः घर जाते समय इस भिक्षुणी के भेष यानि चीवर को उतार देगीं और गृहस्थ जीवन को अपना लेगीं।

महिला अधिकारियों का यह दल भिक्षुणी तिरापोन सिताभवनभिराटकुल के नेतृत्व में भारत के बौद्ध तीर्थ स्थलों सहित नेपाल के 15 दिवसीय यात्रा पर आया है। जिसका मुख्य उद्देश्य बौद्ध धर्म से जुड़े उन रहस्यों को जनना है। जिसके लिए भगवान बुद्ध ने इन प्रमुख स्थलों को इतना महत्व दिया। कुशीनगर में यह दल गुरूवार की सायंकाल आया उसके बाद बौद्ध भिक्षुणियों ने सर्व प्रथम मुख्य मंदिर में पूजा के बाद तथागत की लेटी प्रतिमा पर चीवर चढ़ाया, फिर रामाभार स्तूप की पूजा की। सेना व पुलिस अधिकारियों का दल 24 अक्टूबर को बोधगया पहुंचा और दीक्षा ग्रहण करने के बाद सभी 360 महिला अधिकारी भिक्षुणी बनी। भारत तथा नेपाल का भ्रमण करने के बाद 7 नवंबर को भिक्षुणी बोधगया में चीवर उतारकर गृहस्थ रूप में आकर 8 नवंबर को थाईलैंड लौट जाएंगी।

संवाद्दाता ने जब भिक्षु फ्रा लकापान्या मैथी से उनके आगमन के बारे में पुछा तो उन्होने बताया कि भारत के समस्त बौद्ध तीर्थ स्थलों के साथ कुशीनगर का दर्शन करने के बाद हमारा दल नेपाल के लिए रवाना होगा। 
उन्होंने बताया कि प्रत्येक थाई निवासी को बौद्ध धर्म की दीक्षा लेना आवश्यक है। इसी के तहत 360 महिला अधिकारियों ने 15 दिनों तक भिक्षुणी जीवन बिताने का संकल्प लिया है और वे भारत तथा नेपाल के भ्रमण पर हैं।

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