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कुशीनगर में बाल श्रम रोकने का प्रयास विफल



कुशीनगर । उत्तर प्रदेश में बालश्रम रोकने के सरकार के सभी दावे फेल नजर आ रहे हैं। सरकार कहती है कि बाल मजदूरी अपराध है, जो भी शामिल होगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
 
शिक्षा का अधिकार लागू होने से सभी बच्चों को पढ़ने का मौका मिलेगा, लेकिन यह सभी दावे कितने फिसदी सत्य है। इसके लिए अभी तक कोई विशेष खोज खबर नही ली गयी। 

 
जहां इनके लिए 2005 में बाल श्रमिको के अध्ययन के लिए 33 विद्यालय कुशीनगर में खोले गये। जो चार बर्षो तक चलते रहे। किन्तु वहां बालश्रमिक नही थे वल्कि गांवों के ही बच्चें शामिल रहे।
 

कुशीनगर के गरीब, वेवस, लाचार बच्चे ईट-भट्ठों पर काम करते नजर आ रहे हैं, यही नही होटलों में प्लेट साफ करना भी शायद उनकी कोई मजबूरी ही होगी। 

कुशीनगर में करीब 320 ईट भट्टे है। जिनमें वाणिज्य कर विभाग के अनुसार 298 ईट भट्टे पंजीकृत है जिनसे दो करोड़ रूपये के कर की बसूली की जाती है। वही 
कुशीनगर में पर्यटन विभाग के आकड़े के अनुसार 18 पंजीकृत होटल है। तथा इसके आलावे तीन हजार चाय-पानी की ऐसी दुकाने है। जिन पर बाल श्रमिक ही रहते है।
 
एक तरफ तमाम सरकारी व गैर सरकारी एजेंसियां बाल मजदूरी रोकने का दावा करती हैं, लेकिन हकीकत ठीक इसके उलट है। बाल श्रम देखना हो तो क्षेत्र के ईट भट्ठों पर चले आइए जहां बचपन सिसकता हुआ मिलेगा। कलम वाले हाथों में ईट बनाने के सांचे नजर आएंगे।
 
ये वे मासूम हैं जो बचपन की उम्र में पचपन के बराबर काम करते है। भट्ठों पर बिहार, झारखंड व मध्य प्रदेश के साथ ही स्थानीय कुशीनगर के मजदूर भी ईट बनाने का काम करते हैं। अगर एक नजर इसका भौतिक सत्यापन कर लिया जाय तो उनके बच्चे भी कंधे से कंधा मिलाते नजर आएंगे। जिन मासूमों को खेलने, खाने व पढ़ने की उम्र है, वे बड़ों का काम करते हैं। 

ऐसा भी नहीं है कि इसकी जानकारी सरकारी व गैर सरकारी एजेंसियों को नहीं है, पर इनके हकीकत से कोई वास्ता नहीं है। बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए कई कानून भी बने, पर इन मासूमों पर उस कानून का कोई दखल दिखायी नही पड़ता।
 
इस सम्बन्ध में श्रम प्रर्वतन अधिकारी टी जे सिंह का कहना है कि इस सम्बन्ध वाबुओ से ही पुछ कर हमारे लिए बताना सम्भव होगा। वैसे हर साल कुछ न कुछ बाल श्रमिक पकड़े जाते है।

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