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त्याग की देवी मां का गुण-गान पुत्र की क्षमता से उपर

कुशीनगर । मां के लिए शब्द कम पड़ सकते है पर मां की ममता का गुण-गान एक पुत्र के क्षमता से उपर की बात है। त्याग और बलिदान की साक्षात् मूर्ति कही जाने वाली मां के लिए यह पक्तियां कि मां के दिल जैसा दुनियां में कोई दिल नहीं। किसी जमाने में हिन्दी सिनेमा का ख्याति प्राप्त गीत रहा, जो मां और उसकी संतानों के सौम्य रिश्तों के लिए आज भी सटीक बैठता है।
 
भारत में आदिकाल से माताओं की पूजा होती चली आ रही है। धर्मग्रंथों की यह पंक्तियां युगों-युगों से प्रासंगिक बनी हुई हैं कि पूत कपूत भले हो जाएं किन्तु माता कुमाता नहीं होती।
 
विश्व मातृत्व दिवस के अवसर पर रविवार को कुशीनगर जनपद के तमाम संस्थानों में मां की महिमा का बखान सुनने को मिला। बक्ता कहते नही थक रहे थे। 

इस अवसर पर महात्मा गाधी शिक्षण संस्थान में एक गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें वरिष्ठ पत्रकार व संस्था के प्रबन्धक भानू प्रताप तिवारी ने मां शब्द पर तीन घण्टे तक विशेष वक्तव्य दिया। 

उन्होंने कहा कि विश्व में भारत ही मात्र ऐसा देश है जहां माताओं की पूजा परम्परा सृष्टि के सृजन काल से चली आ रही है। इसी के तहत सितम्बर व अक्टूबर में मनाये जाने वाले शारदीय नवरात्र में दस दिनों तक मां दुर्गा की शक्ति पूजा होती है। 

इसके अलावा देश में विभिन्न तीज-त्यौहारों यथा दीपावली में मां लक्ष्मी, बसंत पंचमी में मां सरस्वती आदि की पूजा अर्चना होती है। कथाओं पुराणों से लेकर विज्ञान भी माताओं की महिमा व महत्ता को स्वीकारता है। इसीलिए जीवन मूल्यों से जुड़े अन्न, पानी और भूमि आदि स्रोतों की भी पूजा क्रमश मां अन्नपूर्णा, मां गंगा और मां पृथ्वी के रूप में की जाती है।

 जिससे हमें विना कुछ लिए स्वार्थ रहित कुछ भी प्राप्त होता उसमें ममता दिखायी देता क्योकि यह एक मां ही कर सकती है।
 
इस विचार गोष्ठी में पत्रकार अजय कुमार त्रिपाठी ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि हमारी संस्कृति का संकरण पाश्चात्य देशों की संस्कृति से होना चिन्ता का विषय है। आज के युवाओं द्वारा त्याग की देवी माताओं को असहाय स्थिति में छोड़ दिया जाना बेहद निंदनीय है।

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