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हजारों बर्ष पूरानी तिब्बती दवा सोवा रिगपा को अभी मिल रहा संरक्षण



टाइम्स ऑफ़ कुशीनगर ब्यूरो 
कसया, कुशीनगर । पारंपरिक तिब्बती दवा सोवा रिगपा के संरक्षण, प्रोत्साहन और उसके पुनर्जीवन के लिए भगवान बुद्ध की परिनिवार्ण स्थली कुशीनगर में तिब्बतन मेडिकल एंड एस्ट्रोलाजी इंस्टीच्यूट मेन-सी-खांग नामक एक सस्था ने अभी भी इसे जीवित रखा है।

हजारों वर्ष प्राचीन तिब्बती दवा सोवा रिगपा के लिए कार्यरत इस सांस्कृतिक, शैक्षिक व चैरिटेबुल संस्था की स्थापना 1961 में हिमांचल प्रदेश के धर्मशाला में तिब्बतियों के आध्यात्मिक गुरू दलाईलामा की देखरेख में किया गया था।

यह जानकारी इंस्टीच्यूट की डा. यूडोन ने शनिवार को बातचीत के दौरान दी। उन्होंने बताया कि संस्था एम्स, नेचुरल मेडिसीन रिसर्च सेंटर हदसाह इजराइल, लिबरपुल विवि ब्रिटेन के साथ रिसर्च में भागीदार है।

उन्होंने बताया कि हर्बल दवाओं का निर्माण हिमालय क्षेत्र में पाई जाने वाली जड़ी बुटियों से धर्मशाला की प्रयोगशाला में किया जाता है। देश भर में 54 चिकित्सा केंद्र है जहां 6 सौ 21 चिकित्सक और कर्मचारी कार्यरत हैं। उन्होंने बताया कि 30 जून 2013 को लेह में हिमालय क्षेत्र के लोगों व पर्यटकों के लिए एक केंद्र खोला गया है।

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