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बहनों ने भाईयों के लिए गोवर्घन की पुजा कर पाया अमरता का बरदान


टाइम्स ऑफ़ कुशीनगर ब्यूरो 
कुशीनगर । भाई-बहन के प्रेम व स्नेह का प्रतिक भैया दूज, का पर्व मंगलवार को धूम-धाम से मनाया गया जहां बहनों ने गोवर्घन पुजा कर भाईयों कों अमर करने का बरदान पाया।

ज्ञातव्य हो कि कार्तिक मास की द्वितीया को मनाया जाने वाला यह भैया दूज का पर्व विशेष कर भाईयों के अमरता के लिए मनाया जाता है। इस दिन बहन भाई को तिलक लगाकर नारियल गोला देती है।
ऐसी मान्यता है कि जिन महिलाओं के भाई दूर रहते हैं और वह उन तक भैया दूज के दिन नहीं पहुंच पाती, वह इस खास दिन नारियल के गोले को तिलक करके रख लेती हैं और फिर जब उन्हें मौका मिलता है, वह भाई के घर जाकर उन्हें यह गोला भेंट करती हैं। इसके अलावा भैया दूज के दिन मिठाई के साथ गोला भी भेंट करने का रिवाज है।
भैया-दूज बहन-भाई के प्रेम का पर्व है। पांच नवंबर को कार्तिक मास माह शुक्ल पक्ष की द्वितीय को यह पूर्व भारत वर्ष में धूमधाम के साथ मनाया गया है। जहां बहनों में इस पर्व को लेकर उत्सुकता दिखायी हैं, वहीं भाई भी अपनी बहनों के लिए महंगे उपहार खरीदकर भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मजबूत करने की कामना किये। भैया-दूज पर्व इस बार विशेष योग लेकर आया था। वृश्चिक राशि में मंगल स्वामी रहेगा, जो बहनों के भाईयों के लिए सुख-समृद्धि और खुशहाली भरा रहेगा। सर्वसिद्धि योग में अगर बहनें अपने भाईयों को तिलक करेंगी और न केवल भाईयों को दीर्घायु मिलेगी बल्कि रिश्तों में स्थिरता भी रहेगी।


आचार्य शिवजी त्रिपाठी के मुताबिक भैया दूज के पर्व को यम द्वितीय के रूप में भी मनाया जाता है। जो यमराज से जुड़ा हुआ है। इस दिन बहनें भाई को तिलक कर यमराज से उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस बार भैया-दूज पर्व वृश्चिक राशि में मंगल गृह में आया है, जो बहनों के भाईयों के लिए श्रेष्ठ और स्थिर रहा। सुबह सात बजकर 42 मिनट से लेकर दस बजकर दो मिनट तक बहनें विशेष पूजा-अर्चना करके अपने भाईयों को तिलक की होगी तो परिणाम बेहतर रहेंगे। मंगल गृह के अनुसार ही बहनों के भाईयों पर प्रभाव रहता है। अगर बेहतर रहेगा और भाईयों को खुश समृद्धि और लंबी आयु मिलेगी और अगर विपरित रहेगा तो भाईयों पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

बताते चले कि भैया-दूज की शुरुआत द्वापर युग से हुई। इसे यम द्वितीय भी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य की संज्ञा से दो संतान थी, पुत्र यमराज व पुत्री यमुना। यमुना और यमराज में बहुत प्रेम था। वह जब भी यमराज से मिलने जाती, उन्हें अपने घर आने को कहती। लेकिन व्यस्तता के चलते यमराज नहीं जा पाते। एक दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीय को यमराज अचानक अपनी बहन यमुना के घर पहुंच गए। 

यमुना ने अपने भाई का आदर सत्कार करते हुए तिलक लगाया और स्वादिष्ट भोजन भी कराया। यमराज अपनी बहन की सेवा से बहुत प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा। यमुना ने अपने भाई के आग्रह को स्वीकार करते हुए कहा कि आप यह वर दीजिए कि प्रतिवर्ष आज के दिन आप यहां आएंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार करेंगे। वहीं इस दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाकर आतिथ्य स्वीकार करेगा, आप उसे दीर्घायु का आशीर्वाद देंगे। तभी से हर वर्ष कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीय को भैया-दूज को पर्व मनाया जाता है।

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