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तरस गये पानी के लिए कुशीनगर में खेत



कुशीनगर । उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में खेत पानी के लिए तरस गये है एक तरफ तो बरसात भी नही हुयी दुसरे नहरें भी सुख गयी। अब तो हमें भगवान ही बचायेगा ऐसे वाकया किसान कहने को मजबूर हो गये है।

ज्ञातव्य हो कि कुशीनगर जनपद के खेतों को पानी उपलब्ध कराने के लिए वर्ष 1961 में मुख्य पश्चिमी गंडक नहर प्रणाली का निर्माण शुरू हुआ। 1971 में मुख्य पश्चिमी गंडक नहर की पूरी प्रणाली विकसित कर दी गई। कुशीनगर जनपद में 1491 किलोमीटर नहरें हैं, जिनके सहारे 58000 हेक्टेयर क्षेत्रफल की सिंचाई होनी है।
बर्तमान स्थिति ऐसी है कि रबी सीजन शुरू होने के बाद भी इस जिले की नहरें बेपानी हैं। इधर, पूरे दिसंबर माह नहरों के बेपानी रहने की ही बात कही जा रही है। इससे खेती-किसानी बुरी तरह से प्रभावित होगी।

एक नजर जनपद में सिंर्चाई केे लिए उपलब्ध साधनों की स्थिति को देखा जाये तो ज्ञात होगा कि हमारे पास कितने संसाधन है जिनके भरोसे सिंचाई का जिम्मा प्रशासन ले लेता है कुशीनगर में कुल कृषि योग्य क्षेत्रफल 2.5 लाख हेक्टेयर जिसमें लघु एवं सीमांत किसान 4.01 लाख है। यहां सिंचित क्षेत्रफल रू 177094 हेक्टेयर उसमें नहरों से सिंचित क्षेत्रफल रू 58000 हेक्टेयर पर होती है। राजकीय नलकूपों से सिंचित क्षेत्रफल 1533 हेक्टेयर है जिसमें निजी नलकूपों से सिंचित क्षेत्रफल  86700 हेक्टेयर है। इसमें राजकीय नलकूप रू 193, 48 बंद, पांच खराब है।

उधर वर्ष 2008 में सिंचाई विभाग ने सरकार को लिखकर दे दिया है कि पूरी मुख्य पश्चिमी गंडक नहर प्रणाली ध्वस्त हो चुकी है। बगैर जीर्णोद्धार के खेतों को पानी देना संभव नहीं है। वर्ष 2008 में डौलों की मरम्मत, सिल्ट सफाई, सर्विस रोड, रेगुलेटर, नहर की लाइनिंग आदि के लिए 142 करोड़ की मांग की थी। 

 चार साल बीत गए लेकिन सिंचाई विभाग के लिखकर देने के बावजूद भी किसी ने ध्वस्त हो चुकी मुख्य पश्चिमी गंडक नहर प्रणाली के जीर्णोद्धार के विषय में नहीं सोचा। आज यह लागत 235 करोड़ के आस-पास पहुंच गई है। कुशीनगर जनपद के नहरों की सिंचन क्षमता 1991 से ही कम होती चली आ रही है। इस सम्बन्ध में अधिशासी अभियन्ता का कहना शासन से बात-चीत चल रही है जल्द ही निराकरण किया जायेगा।

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