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कुशीनगर में आज भी विद्यमान है मेले की पैसठ साल पूरानी संस्कृति




कुशीनगर । उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर बसें कुशीनगर में आज पैसठ साल पूरानी संस्कृति को मेले के रूप में लोगों ने जीवित रखा है। दिन प्रतिदिन इसकी ख्याति चहुओर फैल रही है।

पैसठ साल पूरानी इस संस्कृति की कहानी कुशीनगर जनपद के तमकुही विकास खंड अन्र्तगत ग्राम पंचायत सेमरा हर्दो पट्टी में दिपावली के दिन शुरू हुयी थी।

सेमरा हर्दो पट्टी गांव के बुजुर्गो के हवाले से बताया गया है कि गांव के एक घर में दिपावली की रात चोर घुस आया जिसे पकड़ कर ग्रामीणों ने सुबह खूब धुनाई की। इसके प्रतीक स्वरुप प्रतिवर्ष दिपावली की सुबह एक सुअर का पैर भैंस के पैर में बांध दिया जाता और उन्हें लड़ने को उकसाया जाता।

इस दिन जिस व्यक्ति के भैंस के आक्रमण से सुअर की मौत होती थी उस व्यक्ति का कुर्ता इनाम स्वरुप ले लिए जाने की विचित्र परंपरा थी। सुअर और भैंस की लड़ाई देखने के लिए क्षेत्र के लोगों का जमघट लग जाता था। जो बाद में क्रमशः मेले का रुप धारण करता गया। बाद में बुद्धिजीवियों के पहल पर इस लड़ाई को पशुओं के खिलाफ क्रूरता और अत्याचार मान इसे बंद करा दिया गया।

यह कहानी धीरे-धीरे मेले का रूप पकड़ती गयी और विख्यात होगयी है।  मेले का क्षेत्र के लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है। चार दिनों तक चलने वाला यह जनपद का एक मात्र मेला है जो अपने परंपरागत विशेषताओं को कायम रखने के चलते मशहूर है।

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.................................TIMES OF KUSHINAGAR