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गन्दें नालों से शान्ती चाहती है बुद्ध की हिरणवती नदी


कुशीनगर। भगवान बुद्ध की परिनिवार्ण स्थली को कभी सिंचित करने वाली हिरणवती नदी आज शहर के गन्दे नाले के पानी से पट चूकी है स्थिति ऐसी है कि गन्दे नाले के पानी से शान्ती ढ़ूढ रही है। वह समय कुछ और था जब भगवान बुद्ध इस नदी के तट पर बैठ पूरूवा हवा के शीतलता को ग्रहण किया और शान्ती का उपदेश दिया।

भगवान बुद्ध के अन्तिम क्षणों की यादगार यह नदी आज शीतलता तो दूर शुद्ध जल के लिए ही तरस रही है। इघर सूखती नदी को बौद्ध अनुूयायी फिरसे उसी रूप में देखनाचाहते है।

ज्ञातव्य हो कि गौतम बुद्ध ने कुशीनगर में निर्वाण के पूर्व इस नदी से जल ग्रहण किया था। इस नाते बौद्धों में इस नदी के प्रति आस्था गहरी है। दूर-दूर से आने वाले बौद्ध अनुयायी रामाभार स्तूप के पास बने बुद्धाघाट पर इस नदी के जल से आचमन करते हैं।

इसके अलावा अंबेडकरनगर वार्ड के इटहिया पुल और रामाभार पुल पर शवदाह करने के बाद लोग इस नदी में स्नान भी करते हैं। अंबेडकरनगर वार्ड में और बुद्धाघाट पर इस नदी के किनारे छठ पूजा का भी आयोजन होता है। छठ पूजा में महिलाएं नदी के जल में खड़ी होकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं।

लेकिन अफशोश आजकल कसया शहर के आधा दर्जन से अधिक वार्डों से निकलने वाला गंदा पानी इसी नदी में बहाया जा रहा है। कसया मुख्य मार्ग के दोनों किनारों की ओर बसे वार्डों के पानी की निकासी के लिए रामाभार पुल के पास तक नाला निर्माण किया गया है। यह पानी सीधे पुल के नीचे से होकर हिरण्यवती नदी में गिर रहा है। विशुनपुर विंदवलिया गांव का गंदा पानी भी इसी नाले में गिर रहा है। अब अंबेडकरनगर और बुद्धनगरी वार्ड के गंदे पानी की निकासी के लिए इटहिया पुल के पास नये नाले का निर्माण कराया जा रहा है। पास में छठ घाट भी स्थित है।

 ऐसे में आने वाले दिनों में सबकी दिक्कतें बढ़ेगी। बौद्ध भिक्षु इसी कारण एतराज जता रहे हैं। बौद्ध भिक्षु मांग कर रहे है कि प्रशासन इस समस्या को अतिशीघ्र निदान करे जिससे इस ऐतिहासिक घरोहर को बचाया जा सकें। 

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