यूपी में जलाजल से मेन्था का हाल बूरा, किसान के होश उड़ें
कुशीनगर। उत्तर प्रदेश में लगातार हो रही बारिस ने मेंथा किसानों के चेहरे की खुशी छीन ली है। बीते साल मेंथा तेल के महंगे दामों पर बिकने के बाद इस साल अच्छे मुनाफे की आस लगाए बैठे किसानों को बारिश ने जोर का झटका दिया है।
बताते चले कि उम्मीद से ज्यादा हुई बारिश के चलते खेतों में पानी भर जाने से मेंथा की फसल सडने लगी है। फसल तैयार होने के समय हुई बारिश के चलते अब किसानों को लागत निकालने के लाले पड़ गए हैं। पानी की अधिकता से पत्तियां पीली होने व टूटने का खतरा बढ़ गया है। किसानों का मानना है कि जो फसल सडने से बचेगी भी, उसमें ज्यादा तेल निकालने की गुंजाइश नहीं बचेगी। उनका कहना है कि पानी ज्यादा होने से मेंथा का तेल नीचे तह में चला जाता है, नतीजन किसान के हाथ केवल डन्ठल ही आना है। अब उनके लागत की घनराशि मिलनी भी नामुमकिन लग रही है।
ज्ञातव्य हो कि सबसे ज्यादा मेंथा उत्तर प्रदेश में पैदा होता है और बाराबंकी जिला इसका सबसे बड़ा केंद्र है। देश में मेंथा के कुल उत्पादन का 80 फीसदी हिस्सा उत्तर प्रदेश में होता है। मेंथा की फसल से होने वाले मुनाफे को देखते हुए अब प्रदेश के कुशीनगर के किसान इसकी फसल अपना रहे हैं। इस समय प्रदेश के एक दर्जन से ज्यादा जिलों में मेंथा की खेती की जा रही है।
बीते साल मेंथा का तेल 1500 से 1800 रुपये लीटर तक बिका था, जिससे उत्साहित होकर इस साल बड़ी तादाद में किसानों ने मेंथा की फसल लगाई थी। मेंथा की खेती के लिए उत्तर प्रदेश सरकार का उद्यान विभाग किसानों को अनुदान भी देता है। हाल के दिनों में बड़े पैमाने पर प्रदेश सरकार ने किसानों को मेंथा का तेल निकालने की टंकी खरीदने के लिए कर्ज भी बांटा है।
आज प्रदेश के कुशीनगर, महराजगंज देवरिया, गोरखपूर, सीतापुर, लखनऊ, हरदोई, बांदा, लखीमपुर, बहराइच सहित एक दर्जन से ज्यादा जिलों में इसकी खेती होने लगी है। मेंथा की खेती मार्च में शुरू होकर जुलाई-अगस्त तक चलती है।
उप कृर्षि निदेशक गंगादीन का कहना है कि कुशीनगर जनपद में मेन्था की खेती कुछ हिस्सों में की जाती है। लगातार बारिस से उस फसल का नुकसान स्वभाविक है।
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