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प्रसव पीडि़ताओं का कुशीनगर में शोषण जारी

नित नये मामले उजागर होने लगे, और दागदार .....

 

 
टाईम्स आफ कुशीनगर ब्यूरों
दुदही, कुशीनगर । कुशीनगर के विकास खण्ड दुदही में एक सप्ताह के अन्दर दलित प्रसव पीडि़त दो अदद महिलाओं के मामले उजागर हुये। ये दोनों मामले प्राईवेट हास्पीटल से जुड़े हैं। जहां पैसे के लिये महिलाओं को बन्धक बनाया गया था। जो बाद में पुलिस व स्वास्थ्य विभाग के हस्तक्षेप से समाप्त हुआ।

मामला तो निस्तारित हो गया परन्तु समस्या ज्यों कि त्यों है। सरकारी अस्पताल के नार्मल डिलेवरी इश्यू कराने वाले विशेषज्ञ जब-जब अपने कर्तव्य और जिम्मेदारी से बहकते रहेगें तब-तब जच्चा-बच्चा को बंधक बनाया जाता रहेगा। आखिर इसके लिये जिम्मेदार कौन हैं? नवजात शिशु और जन्म देने वाली मां का क्या दोष है? जच्चा-बच्चा जीवन और मृत्यु से संघर्ष कर नया जीवन पाते हैं जिसकी कीमत उन्हे बन्धक बनाकर वसूला जाता है।

दुदही में एक सप्ताह के अन्दर इस तरह की एक के बाद एक हुई घटनाओं ने चिकित्सकों की मर्यादा को शर्मसार कर दिया। सरकारी अस्पताल से रेफर होकर प्राइवेट में जाना फिर पैसे के लिये बन्धक बनाया जाना। व्यवसायिक दृष्टि भले ही सही हो परन्तु चिकित्सीय धर्म के विरुद्व है। 28 फरवरी को मुसहर महिला को तीन दिन तक पैसे के लिए बन्धक बनाने के मामले की गरमाहट अभी थमी नही थी कि 5 मार्च को भी एक और दलित महिला को बन्धक बनाने का मामला प्रकाश में आया। इस मामले में प्रसव पीडि़त के परिजन झांसे के शिकार हुये।

सवाल यह है कि प्रशिक्षित व विशेषज्ञ जिनकी नियुक्ति सी0एस0सी0 व पी0एस0सी0 में की गयी है। वे अधिकांश रोगियों को रेफर कर देते हैं या उन्हे प्राइवेट में जाने का परामर्श देते हैं। कई बार यह सामने आया है कि नार्मल डिलेवरी सा0 स्वा0 केन्द्र से रेफर हो गयी और बगल के नर्सिंग होम में नार्मल डिलेवरी करायी गयी जहां रोगी का आर्थिक शोषण किया गया। स्वास्थ्य विभाग भले ही अपने उपर दोष न ले लेकिन कहीं-न-कहीं इस तरह के मामले में इनकी भी सहभागिता है। मरीजों को संतुष्ट करने में विभाग के लोग लापरवाह हैं।

इस सम्बन्ध में प्रभारी चिकित्साधिकारी उमेश सिंह कहते हैं कि मरीजों को बेहतर चिकित्सा देने के लिये जिला अस्पताल रेफर किया जाता है। कुछ ऐसें ट्रीटमेंट हैं जो हम नही दे सकते ऐसे में कोई भटक कर इधर-उधर चला जाय तो इसमें मरीज का ही दोष है।

वही आरोपित नर्सिंग होम के डाक्टर भी अपने दामन को साफ-सुथरा ही बता रहे है। उनकी सुने तो वे बिगड़े केश में अपने हुनर से मानव सेवा करते हैं। जान बचाते हैं। परन्तु इसका इनाम रोगी दूसरे रुप में दे रहे हैं। विचारणीय यह हैं कि दामन किसका, कितना साफ है यह सच्चाई तो समस्या उत्पन्न होने के बाद दिखाई देती है। ऐसे में यह अनुतरित सवाल बार-बार झकझोर रहा है कि प्रसव पीडि़ताओं के शोषण का जिम्मेदार कौन है?

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