विकास के सपनों लिए करना पड़ सकता है इन्तजार
कुशीनगर। कुशीनगर में विकास का सपना देखने वाली जनता को अभी अपने सपनों के लिए अभी काफीं इन्तजार करना पड़ सकता है। क्योकि किसी भी दल ने इसके स्थायी समाधान पर जोर नही दिया।
ज्ञातव्य हो कि कभी किसी ने पडरौना से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, जम्मू की सुगम यात्रा के लिए एक्सप्रेस ट्रेनों की सवारी का सपना दिखाया तो किसी ने कुशीनगर अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट का सपना दिखाया। सड़कों के लिए निर्माण के बाबत 20 करोड़ आहरित होने के बाद भी निर्माण कार्य पूरा कराने का सपना दिखाया पर अफशोस पूरा करने कि किसी ने ठोस पहल नही की।
एयर पोर्ट के लिए भूमि अधिग्रहण तो हुआ, लेकिन उड़ान की उम्मीदें धरी की धरी रह गई। जब विदेश में बैठे परिजन घर फोन करते है है तो बस उनकी भी यही इच्छा है। कि कब बनेगा हमारे कुशीनगर के हवाईअड्डा! लेकिन क्या करे कोई उन्हे फिर बताना पड़ता है अभी हवाई अड्डा का इन्तजार न कीजीएं। अभी इसमें कई सााल लगेगें। तो रोजगार की तलाश में गये लोग पुछते है क्या हुआ कोई लम्बी ट्रेन चली की नही तो बसे बरबस मुह से यही निकलता है। नही! क्या पता कब हमें ये सुविधाये मिलेगी। कब हम अपने घरो से निकलकर उड़ाने भरेगे? इन सारे प्रश्नों की जनता जबाव तलाश रही है। कि कोई आवें और हमारे सपनों को सकार करें। लेकिन वर्ष 2014 में भी सपनों के पूरा होने की सम्भावना पर कुशीनगर के में विभिन्न राजनीतिक दलों ने स्थाई समाधान कराने की पहल नहीं की।
अब जब लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होने वाला है, ऐसे में फिर पुराने मुद्दे उभरने लगे हैं। चालू वर्ष में जिले में विकास के संजोए गए कई सपने अधूरे रह गए। तमाम योजनाओं को धरातल न मिल सका तो कई की पत्रावलियां धूल ही फांकती रही हैं। अधूरे कार्य पूरे नहीं हो सके। इससे आम नागरिकों की उम्मीदों पर तुषारापात हुआ है।
16 दिसंबर 2011 का वह दिन जब को भारत सरकार के रेल राज्य मंत्री केएच मुनिअप्पा पडरौना रेलवे स्टेशन पर नव निर्मित कप्तानगंज-थावे आमान परिवर्तन पर पहली पैसेंजर ट्रेन को हरी झंडी दिखायी थी तो इस रेल खंड पर लंबी दूरी के एक्सप्रेस ट्रेनों के दौड़ाने की बात कही थी। और सबको लगा था कि अब हमारे दिन बहुरने वाले है हम भी लम्भी दूरी की यात्रा कर अपने स्टेशन से कर सकेगे। लेकिन अफशोस दो वर्ष बाद भी, लंबी दूरी की ट्रेनों की आस पूरी नहो सकी। इस रूट पर पैसेंजर ट्रेनों व देर रात्रि में एक्सप्रेस ट्रेनों के सहारे ही यात्रा हो रही है।
वही हाल कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट का है, जिसके निर्माण के लिए कसया-रामकोला मार्ग पर 403 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहीत है। बुद्ध स्थली को हवाई सेवा से जोड़ने की योजना को धरातल पर उतारने के लिए केंद्र सरकार ने तेजी भी दिखाई। प्रथम चरण के निर्माण के लिए 400 करोड़ का टेंडर निकला। निर्माण कार्य के लिए 32 कंपनियों ने आवेदन किए, लेकिन प्रस्तावित बजट को कम बता अधिकांश ने हाथ पीछे खींच लिए। इससे चालू वर्ष में हवाई उड़ान के जरिये पर्यटन विकास की संभावनाओं पर ग्रहण लग गया।
इस बाबत दिल्ली में कई दौर की बैठकें भी हुई, चालू वर्ष में हवाई यात्रा की उम्मीद जगी। पर हवाई यात्रा की कौन कहे अभी तो हवाई पट्टी के निर्माण कार्य ही शुरू न हो सका। अब तो स्थितियां ऐसी हो चली है कि कही कोई आश नही दिख रही है।
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