बदहाल हो गया बाबू गेंदा सिंह गन्ना प्रजनन एवं अनुसंधान केंद्र
आप कार्यकर्ताओं ने मांगा सरकार से जबाब
टाइम्स ऑफ़ कुशीनगर ब्यूरो


तब इस संस्थान के लिए सरकार ने अलग से बजट की व्यवस्था करते हुए पूर्वांचल के सभी गन्ना शोध संस्थानों, गन्ना शोध केंद्र कूड़ाघाट, गोरखपुर, लक्ष्मीपुर, कटया, सादात, गाजीपुर, कुशीनगर, अमहट, सुल्तानपुर, घाघरा घाट और बहराइच केंद्र को भी इससे संबद्ध कर दिया था। उस दौरान कम समय में ही गन्ने की अच्छी एवं उन्नतशील प्रजातियों को विकसित करने की बदौलत इस संस्थान की पहचान एशिया स्तर पर बन गई थी।
1995 में इस संस्थान के निदेशक डॉक्टर एचएन सिंह का तबादला हो गया और उसके बाद दो साल तक यह पद रिक्त रहा। एक तरफ वैज्ञानिकों की कमी का इस संस्थान पर काफी असर पडा। वही वर्ष 1995 में इस संस्थान में निदेशक का पद समाप्त होने के बाद यह और बदहाल होता चला गया। फिर 1997 में सरकार ने इस संस्थान से निदेशक पद समाप्त कर पुनः इसे शाहजहांपुर से संबद्ध कर दिया। उसके बाद से यह संस्थान बदहाली का शिकार हो गया।
इस संस्थान में निदेशक और सलाहकार के पद के समाप्त होने के बाद भी अपर निदेशक का एक पद, संयुक्त निदेशक का दो, वरिष्ठ वैज्ञानिक के आठ, वैज्ञानिक के 32, सुपरवाइजर के 25, सहायक वैज्ञानिक एवं टेक्नीशियन को मिलाकर कुल 174 पद हैं। वैज्ञानिकों की तादाद लगातार घटने के चलते इस संस्थान की स्थिति और खराब हो गई।
आप पार्टी के कार्यकर्ता बी. पी. तिवारी व ए. के. त्रिपाठी ने सयुक्त रूप से सरकार पर किसानों के प्रति उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार को चाहिए कि किसानों के इस देश सबसे पहले काम किसानों का हो। इसके लिए बताया कि पूर्वांचल के गन्ना किसानों के लिए यह संस्थान वरदान है और इसके लिए सरकार को आगे आकर पहल करने की जरूरत है अन्यथा इससे जुड़े किसान आधुनिक गन्ना खेती से मरहुम हो जायेगा जिसकी सारी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी। इस संस्थान के संयुक्त निदेशक डॉक्टर विरेश सिंह कहते हैं कि इस संस्थान को पुराना स्वरूप देने की जरूरत है, ताकि गन्ना किसानों को इसका लाभ मिल सके।
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