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आग के ताण्डव से कुशीनगर में पाॅच लोगों की मौत

  प्रतिदिन जल रहे है कुशीनगर में दर्जनों घर
 पछुआ हवा के साथ लगी आग में एक दर्जन से उपर जानवर हो गये खाक
   शुक्रवार को भी जल कर खाक होगयी 32 बर्षीय महिला
   टाईम्स आफ कुशीनगर व्यूरो।
कुशीनगर । कुशीनगर में पछुआ हवा के साथ आग का ताण्डव अपने शबाब पर है मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। अफसोश कि अभी तक इसके लिए समाजिक व विभागीय जागरूकता भी सामने नही आयी है।
स्थित ऐसी है कि आशियाने जल रहें हंै। अफशोस कि इसके बावजूद भी इस पर कोई घ्यान देने वाला नही है। इस वर्ष भी बेसहारों की तरह घर ही नही लोग भी जलने को मजबूर है।
इधर आग की लपटों ने एक माह के अन्दर जनपद के अलग-अलग थाना क्षेत्रों के एक दर्जन से अधिक लोगों को अपने आगोश में ले लिया है। जिसमें मरने वालों की संख्या 5 हो गयी है। अन्य का इलाज स्थानीय चिकित्सालयों में चल रहा है।
इधर आग से राहत के नाम पर संसाधनों का अभाव हमेशा खटकता रहता है। ऐसे में हर बर्ष आग की समस्या सबसे विकराल है और रोज तिल-तिल मार रही है। प्रति दिन पछुआ हवाओं के झोके घरो को अपने आगोश मे रहे है। आग की एक चिंगारी मिलते ही गरीबों के अरमानों को धूं-धूं कर जलाने लगे है।
अभी रविवार को ही तेज पछुआ हवा के रूप में आग का कहर बरसता रहा। करीब एक दर्जन स्थानों पर हुई अगलगी की घटना हुयी। जिसमें प्रशासनिक अमला भी बेबस नजर आया। वहीं ग्रामीण भी सब कुछ तबाह होता देखते रहे। विभागीय आकड़ों के अनुसार इस दौरान कसया क्षेत्र के सपहां टोला लक्ष्मीपुर में रविवार को दोपहर बाद घूरे की चिंगारी से झोपड़ी में लगी आग से एक 75 वर्षीय वृद्ध मिश्री जायसवाल की मौत हो गई। वह दोपहर बाद अपनी झोपड़ी में अंदर से दरवाजा बंद कर सो रहे थे।
यही नही सेवरही में खाना बनाते समय एक 25 बर्षीय महिला की जलने से मौत हो गयी। वही सेवक छपरा में आग से एक 50 बर्षीय महिला की मौत हो गयी। जटहा बाजार थाना क्षेत्र के एक गांव में अभी हाल ही में दो मासूम बच्चियां जल कर मर गयी यही नही दुदही विकास खण्ड के ग्राम सभा ठाड़ीभार ताध टोले में 11 अप्रैल शुक्रवार की सुबह करीब सात बजे बबिता पत्नी हरेराम उम्र 32 वर्ष लकड़ी के चूल्हे पर भोजन पका रही थी तभी अचानक आग लग गयी। जिसके चपेट में आने से उसकी मृत्यु हो गयी।

ज्ञातब्य हो कि पूर्वाचल के सर्वाधिक पिछड़े जिले कुशीनगर में 1.90 लाख परिवार बीपीएल है जिनके पार छोपडि़यां ही गर्मी के मौसम सूरज की धूप से राहत देती है। एक मात्र पडरौना में स्थापित फायर सर्विस स्टेशन संसाधन विहीन है। भौगोलिक क्षेत्र के हिसाब से 15 वर्ष पुराने संसाधनों के भरोसे गरीबों के आशियाने बचाना मुश्किल हो गया है। गर्मी आते ही यहां के गरीब कमी भी रात में पूरी नींद नही सो पातें। आग से तबाही न मच जाए हर पल गरीब चिंतित रहते। फायर सीजन 1 मार्च से 31 जुलाई तक माना जाता है। ऐसे में इन गरीबों को घर छोड़ना भी मुश्किल भरा होने लगता है। 14 विकास खंड वाले जिले में सिर्फ पडरौना में फायर स्टेशन स्थापित हैं। वह भी घनी आबादी के बीच, जहां से बाहर होने में घंटों लग जाते हैं। सृजित पदों के सापेक्ष तैनाती भी नहीं है। फायर टैंकर भी जर्जर हालत में हैं। न बैट्री ठीक है न वाहन ठीक है।

आग की सूचना के बाद फायर सर्विस की गाड़ी धक्के के बाद चालु होती है और तो और पडरौना फायर स्टेशन पर 75 हजार लीटर के दो फायर टैंकर, 4 पंप हैं। पंप को रखकर घटना स्थल पर पहुंचने के लिए 2 बोलेरो हैं। ट्रालियां भी जर्जर हो चुकी हैं। कांस्टेबल के सृजित 21 पदों में 13, ड्राइवर 3, हेड कांस्टेबल 3 व एक अग्निशमन अधिकारी की तैनाती है। दारोगा के दोनो पद वर्षो से रिक्त पड़े हैं। इस सम्बन्ध में अग्नि शमन अधिकारी ओम प्रकाश कहते हैं जिलें में लगी आगों से करीब 5 लोग ओर करीब एक दर्जन ये अधिक जानवर जल कर मर गये है।

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