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सियासत की घरती का मुद्दा विहीन हो सकता है चुनाव



टाईम्स आफ कुशीनगर ब्यूरो।
कुशीनगर । राजनीति और मुद्दों पर जनता का एक जूट होना कुशीनगर में बर्षो से देखने को मिला है। क्षेत्र की जनता अपने मुददों पर चलने वाले को ही अपना प्रतिनिधित्व सौपती है। तभी तो ये प्रतिनिधि देश तक को अपना लोहा मनवाते रहंे है।

ज्ञातव्य हो कि उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर बसा पूर्वाचल का यह कुशीनगर जिला राजनीति के इतिहास में हमेशा जाना जाता रहा है। इतिहास लिखने पर मजबूर करने वाली क्रांन्तियों ने यहां राजनीति व राजनीतिज्ञों को जमीन से उठाकर शीर्ष पर पहुचाया है। जिसका कारण है कि यह घरती बार-बार भी राजमंगल पाण्डेय, गेंदा सिंह जैसे राजनीतिज्ञों का नाम लेकर अपने आप को गौरवान्वित महसूस करती है। इन राजनीतिज्ञों ने जो इस धरती को दिया। कभी भूल नही पायेगी। इस धरती पर क्षेत्रीय मुद्दों ने तों भरपूर रंग दिखाया। यहां राजनीतिज्ञ से लेकर आम लोगों तक को भी अपने मुद्दों पर वलिदान होना पड़ा।

अगर यह कहा जाय कि यह जमीन सियासत को लेकर हमेशा उपजाऊ रही है तो इसमें कही कोई अतिश्योक्ति नही होगी। यहां तो मुद्दे पर खुब राजनीति हुयी, और इसके बदले में कुशीनगर की सियासी जमीन पर मुद्दो ने बलि तक ली है। वर्ष 1992 का गन्ना को लेकर हुआ वह आनदोलन जिले के रामकोला का इतिहास बन गया। आंदोलन को लेकर गोली चली और दो मजदूरों की जान भी चली गई। वर्ष 2000 में पडरौना में भी चीनी मिल बंदी को लेकर गोली चली और भुल्लन शहीद हुए। इस समय तो सियासत ने कुछ और ही रूख कर लिया जिसका परिणाम हुआ कि सोनिया गांधी, एचडी देवगौड़ा सरीखे बड़े नेताओ को कुशीनगर की घरती पर आना पड़ा।  सियासत इतनी गरम हुई थी केंद्र तक हिल गया। 

भले ही आज इनकी शहादत पर शहीद दिवस मनाया जा रहा हो लेकिन असल में अब यह मुद्दे  उठते ही नही। जनता की लड़ाई को अब राजनीतिक अपनी लड़ाई नही मान रहे है। उन्हे तो बस अब अपना ही है किसी तरह से बड़ी कुर्सी को हथिआने के सारे दाव लगा रहे है। मुद्दो को लेकर अब तरकस से तीर निकलते नहीं बन्द हो गये है। अब तो केवल आरोपों का प्रहार ही सुनने को मिल रहे है। जैसे चोर-चोर मौसेरे भाई हो वह उनकी चोरी बता रहा है वह उनकी चोरी बता रहा है। ऐसे में जनता के मुद्दों को ये राजनीतिज्ञ मैदान से ही भगा दिये। कि कही बलि का बकरा न बन जाना पड़ें।  ऐसे में जनता करे तो क्या करे ? उसके मुद्दें को कोई उठा ही नही रहा है तो मतदान के दिन जातिवाद, परिवाद में आकर वह अपना मत दे देती है।

 जिसके कारण उसे पाॅच साल तक भुगतना पड़ता है। क्यो कि पता चलता है कि उसका सांसद देहरादून का है और वह बर्ष में पाॅच दिन के लिए यहां आता है। तो जनता उसके पास जायेगी और न उसके मुद्दे ही चर्चा में रहेगे। आज कुशीनगर में मुद्दों की कमी नही है। अफशोस इस बात का है कि कोई इसे अपनाना नही चाहता है। आज कुशीनगर की जनता बंद चीनी मिलें, किसानों का गन्ना मूल्य का करोड़ों बकाया, इंसेफेलाइटिस से हो रही मासूमों की मौतें, बाढ़ की विभिषिका से होने वाली तबाही, भूख और कुपोषण से होने वाली मौतें, बेरोजगारी और बिजली, पानी आदि है।

इसके बावजूद इस बार मुद्दे नही बस आरोपों का सिलसिला शुरू हो गया है। कौन कितना सही है? , किसने कितना चूराया ?, कौन कितना बनाया ?, सब यही ढूढ़ रहे है। ऐसा नही कि यहां इस समय मुद्दे नही है। सियासत की इस उर्वरा जमीन पर गन्ना, गंडक और गरीबी को लेकर आंदोलन की विसात पर नेताओं ने मुद्दों का चैसर बिछाया तो जनता ने उन्हें सदन की राह दिखाई।

80 के दशक में रामधारी शास्त्री, सीपीएन सिंह ने प्रदेश और देश की सरकार में इस जनता का प्रतिनिधित्व किया। मुद्दो पर ही चुनावी बिगुल बजते रहे। गन्ने के मुद्दे को लेकर ही रामनगीना मिश्रा  लगातार चार बार सांसद बन कर लोकसभा पहुचे। गेंदा सिंह खाटी किसान नेता की छवि के रूप में उभरे और लोकसभा की राह तय की। इसी मुद्दे ने राधेश्याम सिंह को भी किसान नेता की छवि दिलायी की आज वे विधायक के बाद सांसद बनने की होड़ में है। विकास के मुद्दे पर ही पर कुंवर आरपीएन सिंह सांसद बने और केंद्र सरकार में गृह राज्य मंत्री का दर्जा मिला।

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