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आजादी के लड़ाई में 75 रूपये के इनामी बन गये रामधारी शास्त्री


टाईम्स आफ कुशीनगर ब्यूरो
कुशीनगर । देश के आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों को नाको चने चवबाने वाले रामधारी शास्त्री के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चाए आज भी लोगों की जुबान पर है।रेल लाइन उखाड़कर यातायात बाधित करने के कारण अंग्रेज सरकार ने रामधारी शास्त्री की गिरफ्तारी के लिए 75 रुपये का इनाम घोषित किया था।

ज्ञातव्य हो कि दो जनवरी 1923 को सोंहग गांव में एक आम किसान परिवार में जन्मे स्व. रामधारी शास्त्री ने प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक की पढ़ाई आत्मबल और संघर्षों के बीच पूरी की।

1936 में उन्होंने मिडिल की परीक्षा कुबेरस्थान के एक स्कूल से पूरी की। 1937 में कुबेरस्थान में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। गांधी जी के आह्वान पर 1940 में आचार्य विनोबा भावे ने अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह शुरू किया।

सत्याग्रह को समर्थन देने के कारण रामधारी को एक साल की कैद और एक सौ रुपये जुर्माना की सजा सुनाई गई। 22 दिसंबर 1941 को जेल से रिहा होकर शास्त्री घर लौटे तो आजादी की लड़ाई में फिर से जुट गए।
22 अगस्त 1942 को पडरौना में रेल लाइन की पटरियां उखाड़ने और टेलीफोन तार काटने के जुर्म में ब्रिटिश हुकूमत ने उन पर 75 रुपये का इनाम घोषित किया था। इस मामले में रामधारी 13 अगस्त 1943 को पुनः पकड़ लिये गये।

इधर जेल से छूटने के बाद परिवार की सहायता के लिए उन्होंने गांधी आश्रम में 38 रुपये मासिक के वेतन पर कई माह नौकरी भी की। जेल जीवन में सोशलिस्ट विचारधारा से प्रभावित हुए रामधारी ने समाज और देश की सेवा के लिए पढ़ाई जारी रखना उचित समझा।

काशी विद्यापीठ वाराणसी से उन्होंने शास्त्री और समाजिक विज्ञान से स्नातक की पढ़ाई की। बाद में आचार्य नरेंद्र देव की देखरेख में लखनऊ विश्वविद्यालय से एमए और एलएलबी की पढ़ाई की। 1969 में फाजिलनगर से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर स्व. रामधारी शास्त्री पहली बार विधायक चुने गए। बुधवार को इनका निधन हो गया। ये काफी दिनो से बीमार थें।

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