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सुहागिन स्त्रियों का ब्रत हरितालिका


कुशीनगर। अखंड सौभाग्य और पति व पुत्र के कल्याण का पर्व हरितालिका व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को सुहागिन स्त्रियां निर्जला व्रत रहती हैं। इस पर्व पर हस्त नक्षत्र में पूजन का विशेष महत्व है।

प्रदेश के तमाम जनपदों की भांति कुशीनगर में भी रविवार को हरितालिका का ब्रत रख महिलाओं ने पार्वती और शिव की आराधना की और अपने आप को अखड्य सौभाग्यवती रहने का बरदान मांगा। हरितालिका के महत्व पर प्रकाश डालते हुए शिवजी त्रिपाठी प्रधानाचार्य रविन्द्राश्रम संस्कृत विद्यालय रबिन्द्रनगर बताते  है कि रविवार को हस्त नक्षत्र में तृतीया का सुखद संयोग होने से हरितालिका तीज व्रत का महत्व बढ़ गया है।

उन्होने बताया कि वैसे तो श्रवण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को भी तीज मनायी जाती है। परंतु भाद्रपद मास की तृतीया को बड़ी तीज या हरितालिका तीज कहा जाता है। व्रत कथा का वर्णन करते हुए श्री त्रिपाठी ने कहा कि भगवती पार्वती ने शिव को पति के रूप में प्राप्त करने की इच्छा से सौ वर्ष तक तप किया।

बाल्य अवस्था में पार्वती ने अधोमुख होकर सिर्फ धुएं का सेवन कर बारह वर्षो तक व अगले चैसठ वर्ष तक भयंकर ठंड, भीषण धूप तथा गर्म हवाओं के बीच सूखी पत्तियां खाकर तथा शेष समय पंचाग्नि के बीच तपकर तपस्या की। तब भगवान आशुतोष ने प्रसन्न होकर उन्हें अपने अर्धांगिनी स्वीकार किया। यह दिन हरितालिका तीज का था तब से इस व्रत को महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए करती है। 

श्री त्रिपाठी ने बताया कि शास्त्रों के मुताबिक वे विवाह योग्य कन्याएं भी जिनकी कुंडली में वैधव्य योग, षटाष्टक योग या मांगलिक दोष हो वे यह व्रत करें तो दोषों का समूल नाश होता है। उपवास विधि को बताते हुए उन्होंने कहा कि इस दिन निर्जला उपवास रख सायं काल साजो श्रृंगार कर गोबर के शिव लिंग की स्थापना कर विधिवत पूजन करे। असत्य व राग-द्वेष से मुक्त होकर रात्रि जागरण कर अगले दिन पूजन व अन्न दान के पश्चात प्रसाद ग्रहण करें।

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