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बरसात की एक-एक बूदं के लिए तरस रहा कुशीनगर



कुशीनगर। उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर नारायणी नदी के किनारे वसे कुशीनगर  बरसात की बूदं-बूदं के लिए तरस रहा है। बरसात के दिनों में हर साल यहां कुछ हिस्सा बाढ़ की आगोश में समा जाता है। पर यहां अभी तक न तो बाढ़ आयी और नही बरात की बूदें आयी।
 
इसके भैगोलिक स्थिति पर नजर डालें तो ज्ञात होता है कि नदी, पहाड़ व जंगलों से सटे इस क्षेत्र में लोग पानी की एक-एक बूंद को तरस रहे हैं। प्रबुद्ध बर्ग इसे प्रकृति का कोप मान रहे है और जिसका परिणाम है कि वर्ष दर वर्ष बर्षा की गति धीमी होती जारही है।
 
पिछले दस वर्षों में सबसे कम बारिश वाला साल 2011 रहा, तो इस वर्ष जून माह में अब तक महज 2.8 मिमी ही बारिश रिकार्ड हुई है। एक तरफ इसे सत्य माना जाय तों जून माह की 15 तारीख से बरसात का सीजन शुरू होता है। लेकिन जून का ग्राफ अच्छा नही है। एक नजर बर्षा के आकड़ों पर डाले तो 2003 के जून माह में 348 मिमी, 2004 में 223.4 मिमी, 2005 में 106.4 मिमी, 2006 में 514.4 मिमी, 2007 में 189.6 मिमी, 2008 में 367 मिमी, 2009 में 16 मिमी, 2010 में 65.8 मिमी, 2011 में 117.6 मिमी बारिश हुई ।
 
बरसात के लिए यह क्षेत्र हमेशा अनुकूल माना जाता रहा है। नारायणी नदी कुशीनगर जिले के अधिकांश उत्तरी हिस्से को प्रभावित करती है। यह नदी धवलागिरी पर्वत के मुक्तिनाथ धाम से निकली है, जबकि तिब्बत सहित नेपाल के कई हिस्सों को छूते हुए नेपाल के त्रिवेणी में भैंसालोटन के पास आकर भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करती है।

वही इसके सटे किनारे पर वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के लगभग नौ सौ वर्ग किमी का जंगल है, कुशीनगर की सीमा से  20 किमी दूरी पर नेपाल के पहाड़ों की श्रृंखला मौजूद है। साथ ही सोहगीबरवा वन्य अभ्यारण भी पास में है। फिर भी कम बरसात बेहद चिंता का विषय बनता जा रहा है।
कुशीनगर के एक नागरिक राजेश तिवारी बतात है कि क्या वताये गर्मी के साथ अब तक मानसून का न आना वेहद दुखद है। हमारे फसल का क्या होगा जो पानी से ही होती है। इस समय सूखें की स्थिति है बाद में बाढ़ जैसी स्थिति आ जायेगी और हम तबाह हो जायेगे।

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