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विनियमितकरण से पहले चयन वेतनमान! करोड़ों के फर्जीवाड़े की आशंका

 विनियमितकरण से पहले चयन वेतनमान! करोड़ों के फर्जीवाड़े की आशंका

▪️ कनोडिया इंटर कॉलेज के तीन शिक्षकों पर गंभीर आरोप

▪️सवाल: जब विनियमितकरण 2018 में हुआ, तो चयन वेतनमान 2008 से कैसे मिला? और बिना विद्यालय गए दो वर्षों का वेतन किस आधार पर दिया गया?

टाइम्स ऑफ़ कुशीनगर ब्यूरो

कुशीनगर। उत्तर प्रदेश में कुशीनगर के कप्तानगंज स्थित गंगा बक्श कनोडिया इंटरमीडिएट कॉलेज एक बड़े और सनसनीखेज वित्तीय फर्जीवाड़े के आरोपों को लेकर आज कल चर्चा में है। विद्यालय में तैनात सहायक अध्यापक श्याम नारायण पाण्डेय, वीरेंद्र पाण्डेय तथा बर्खास्तगी के बाद भी कथित रूप से तथ्य छुपाकर सेवा में बने रहे देवेन्द्र पाण्डेय पर नियमों को ताक पर रखकर वर्ष 2008 से चयन वेतनमान का लाभ लेने और सरकारी खजाने को लाखों रुपये की क्षति पहुंचाने के गंभीर आरोप सामने आए हैं।


सूत्रों के अनुसार तीनों शिक्षकों ने न केवल विनियमितकरण से पूर्व चयन वेतनमान का लाभ लिया, बल्कि जुलाई 2012 से मार्च 2014 तक विद्यालय में बिना उपस्थित हुए भी वेतन और बाद में एरियर के रूप में लाखों रुपये प्राप्त किए। बताया जाता है कि इस पूरे दो वर्षीय अवधि में संबंधित शिक्षकों के हस्ताक्षर विद्यालय की मूल उपस्थिति पंजिका में दर्ज ही नहीं हैं, जो सीधे तौर पर सेवा नियमों के उल्लंघन की ओर इशारा करता है।

सूत्रों का दावा है कि वर्ष 2018 में इन शिक्षकों ने तथ्य गोपित कर संयुक्त शिक्षा निदेशक, सप्तम मंडल, गोरखपुर से अपनी सेवाओं का विनियमितकरण करा लिया। जबकि विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि विनियमितकरण के लिए शिक्षक का सेवा काल नियमित होना, निरंतर विद्यालय में कार्य करना तथा प्रतिमाह वेतन आहरण अनिवार्य शर्त है। ऐसे में जब दो वर्षों तक उपस्थिति ही दर्ज नहीं है, तो विनियमितकरण की वैधता पर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है।

मामला यहीं नहीं थमता। सूत्र बताते हैं कि कथित रूप से कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर वर्ष 2025 में इन्हीं दो वर्षों का वेतन एरियर भी आहरित कर लिया गया। जानकारों का कहना है कि बिना कार्य किए वेतन लेना न केवल वित्तीय अनियमितता है, बल्कि यह गंभीर आपराधिक कृत्य की श्रेणी में आता है।

सबसे चौंकाने वाला पहलू चयन वेतनमान से जुड़ा है। सूत्रों के मुताबिक श्याम नारायण पाण्डेय, वीरेंद्र पाण्डेय और देवेन्द्र पाण्डेय ने तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक कुशीनगर के समक्ष पत्रावली प्रस्तुत कर वर्ष 2008 से चयन वेतनमान का लाभ प्राप्त किया, जबकि विभागीय नियमों के अनुसार विनियमितकरण के बिना चयन वेतनमान दिया ही नहीं जा सकता। यदि इन शिक्षकों का विनियमितकरण वर्ष 2018 में हुआ, तो चयन वेतनमान का लाभ नियमानुसार वर्ष 2028 से पहले मिलना असंभव है।

वर्तमान में मामला और भी गंभीर मोड़ पर पहुंच गया है। सूत्रों के अनुसार श्याम नारायण पाण्डेय और वीरेंद्र पाण्डेय द्वारा पदोन्नति के लिए जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय में आवेदन प्रस्तुत किया गया है। इस पर जिला विद्यालय निरीक्षक श्रवण कुमार गुप्त ने विद्यालय प्रबंधन से पदोन्नति संबंधी अभिलेख तलब किए हैं।

हालांकि शिक्षा विभाग से जुड़े जानकारों का कहना है कि जब विनियमितकरण और चयन वेतनमान ही संदेह के घेरे में हैं, तो पदोन्नति की प्रक्रिया स्वयं नियम विरुद्ध प्रतीत होती है। यदि बिना निष्पक्ष जांच के पदोन्नति की कार्यवाही आगे बढ़ती है, तो विभागीय मिलीभगत की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

सूत्रों के अनुसार अब यह मामला केवल शिक्षकों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसमें तत्कालीन और वर्तमान अधिकारियों की भूमिका की भी गहन जांच की आवश्यकता है। जानकारों का मानना है कि यदि आरोप प्रमाणित होते हैं, तो संबंधित शिक्षकों से अवैध रूप से आहरित धन की वसूली, सेवा समाप्ति तथा आपराधिक मुकदमा दर्ज होना जनहित में अनिवार्य होगा।

ऐसे में प्रश्न है कि जब विनियमितकरण 2018 में हुआ,तो चयन वेतनमान 2008 से कैसे मिला?और बिना विद्यालय गए दो वर्षों का वेतन किस आधार पर दिया गया? जवाब जांच के बाद ही सामने आएगा, लेकिन फिलहाल यह मामला शिक्षा विभाग के लिए बड़ी परीक्षा बन चुका है।

रोजगार संगम पोर्टल के माध्यम से विदेशों में रोजगार के अवसर उपलब्ध शीतलहर से निपटने को कुशीनगर प्रशासन सतर्क,

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