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नवरात्र में मूर्ति उद्योग का बढ़ा करोबार,


टाईम्स आफ कुशीनगर व्यूरों
कुशीनगर। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में मुर्ति निमार्ण व विक्री का व्यवसाय दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। कुशीनगर से बिहार तक पहुचने वाली इन मुर्ति से प्रति वर्ष प्रत्येक मुर्तिकार औसतन दस लाख रूपये की कमाई कर लेता है।
दुर्गा प्रतिमा की रंगाई करता कलाकार 
हिन्दू आस्था से जूड़े लोग मूर्ति पूजा में विशेष विश्वास करते है। जिसके कारण प्रत्येक धार्मिक उत्सवों पर मूर्ति रख कर विशेष पुजा की जाती है। शारदीय नवरात्र बुघवार को शुरू हो गया। कलाकार मॉ दुर्गा की प्रतिमाओं को अंतिम रूप देने में जुट गये हैं। कुशीनगर के पडरौना, कसया, हाटा, तमकुही के साथ खडडा बाजार क्षेत्र में ऐसे दर्जनों मूर्तिकार इस व्यवसाय मे लगे हुए है। बंगाली कलाकारो के साथ स्थानीय कलाकार भी इस मूर्ति उद्योग को कुशीनगर में विकसित कर रहे है।

नवरात्रि के अवसर पर दुर्गा प्रतिमाये 
कुशीनगर के पडरौना नगर स्थित रामकोला रोड पर बावली चैक, के निकट मूर्ति निमार्ण का कारोबार वैसे 25-30 वर्षो से चल रहा है लेकिन अब यह कारोबार का रूप ले चूका है। इसका अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पडरौना के मूर्ति कलाकार सागर पाल बताते हैं कि मूर्ति बनाने में करीब हजारो लीटर पेंट की खपत हो जाती है। चूहा, बत्तख, सॉप से लेकर राक्षस तक के बनाने में पेट का इस्तेमाल किया जाता है। हालाकी मूर्ति में बांस, मिट्टी व पुआल का भी पूरा प्रयोग किया जाता। 
पूर्वांचल के कुशीनगर और सीमावर्ती विहार प्रान्त में विगत कुछ वर्षो से मूर्ति पूजा की होड़ मची हुयी है। ऐसे में पिछले पाॅच बर्षो से मूर्तियों की मांग में भरपूर वृद्धि हुयी है। अब इन मूर्तियों में हर्बल रंग से की जा रही कलाकारी इन मूर्तियों के मूल्य वृद्धि में भरपुर सहयोग कर रही है। ये कलाकार गणेश जन्मोसत्व, श्री कृष्ण जन्मोत्सव, विश्वकर्मा पूजा, नवरात्रि, लक्ष्मी पूजा, सरस्वती पूजा, आदि तमाम अवसरों पर प्रतिमों का बनाते है। एक नजर मात्र शारदीय नवरात्र पर डाले तो विगत पाॅच वर्ष पूर्व एक हजार रूपये में बिकने वाली मूर्तियाॅ तीन से चार हजार की हो गयी है। ऐसा नही है कि मूल्य वृद्धि से इनके मांग में कोई अन्तर आया हो। अब मांग प्रत्येक वर्ष बढ़ती ही जारही है। 
मूर्ति कलाकर सागर पाल ने अनुभव को साझा करते  बताया कि पिछले कई वर्षों तक बमुश्किल 40 से 45 प्रतिमाएं हर्बल रंग से तैयार होती थीं लेकिन इस वर्ष यह आकड़ा अधिक पहुंचता दिख रहा है। इस बार तो हमारे यहां मां दूर्गा  की 55 मूर्तियां हर्बल रंग से तैयार की जा रही हैं। मूर्ति के चारो तरफ पेंट लगने से प्रतिमा काफी आकर्षक दिखती है। ऐसे में उसके मूल्य में भी काफी इजाफा होजाता है। ऐसा नही कि मात्र सागर पाल ही ऐसे कलाकार है जो मूर्ति बनाते है। कुशीनगर के पडरौना, कसया, हाटा, तमकुही के साथ खडडा बाजार क्षेत्र में ऐसे दर्जनों मूर्तिकार इस व्यवसाय मे लगे हुए है। बंगाली कलाकारो के साथ स्थानीय कलाकार भी इस मूर्ति उद्योग को कुशीनगर में विकसित कर रहे है ।
 कुमार अजय त्रिपाठी

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