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खन्हवार मां के दरवार से खाली नही लौटा कोई याचक


कुशीनगर । उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में एक ऐसा स्थान है जहां से याचक आज तक खाली हाथ नही लौटा। इस स्थान पर जाने वाले हर उस शक्श की मूरादें मां भगवती बीन मागें पूरी कर देती है।

कुशीनगर का यह स्थान जिला मुख्यालय से 18 किलोंमीटर की दूरी पर कुबेरस्थान के नजदीक स्थित है जिसे खन्हवार वकलोलही के नाम से जाना जाता है। मां भगवती के प्रसिद्ध शक्ति पीठों में एक खन्हवार स्थान पर वैसे तो पूरे वर्ष भर भक्तों का आवागमन रहता है, किंतु विशेष तौर पर बासंतिक एवं शारदीय नवरात्र में यहां की रौनकता और भी बढ़ जाती है। बड़ी संख्या में लोग माता के दर माथा टेकने चले आते है। तभी तो मां बड़ी उदारता के साथ उनकी हर अभिलाषा को पूर्ण कर उन्हें कष्ट मुक्त बना देती है।

मां के इस दिव्य स्थान की महिमा के बारे में बताते हुए पुजारी जनार्दन पाण्डेय बताते है कि आसाम प्रदेश के गुवाहाटी शहर के पहाड़ी पर स्थित स्थान से कमाख्या देवी के वहां से खन्हवार स्थान तक आने का प्रसंग काफी रोचक तथा चमत्कृत कर देने वाला है।

पूर्व काल में यह संपूर्ण क्षेत्र घनघोर जंगलों से अच्छादित था, जहां हिंसक पशु स्वच्छन्दता से विचरण किया करते थे। उसी समय जंगल के मध्य में माता काली के परम उपासक सिद्ध संत रहसू गुरु अपना कुटिया बनाकर निवास किया करते थे। देवी का साक्षात दर्शन प्राप्त रहसू गुरु उनकी अनुकंपा से कतरा (एक विशेष प्रकार का घास) का शेरों के झुंड से दंवरी कराकर अति बासमती जैसे स्वादिष्ट चावल प्राप्त करते थे। दंवरी के लिए मेह के रूप में उपयोग में लाये जाने वाले उस बट बृक्ष का स्थान आज भी है जो देवी स्थान से 5 किलोमीटर उत्तर घोरघटिया ग्राम सभा के बदलपटटी टोले के समीप चवर में स्थित है।

एक बार की बात है कि राजा मदन पाल सिंह शिकार खेलते खेलते इस इलाके में चले आये जहां रहसु गुरू के इस चमत्कार किसी तरह से देख दिया। फिर रहसू गुरु के चमत्कारित शक्तियों से प्रभावित हो। राजा क्रूर तथा सनकी प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, देवी का दर्शन कराने के लिए अड़ गए। अपने भक्त के आह्वान पर कामाख्या से चलकर दुर्गा कोलकाता, पटना, थावे, डमूरे, आदि स्थानों पर रुकती हुई खन्हवार स्थान पहुंच कर कुछ समय के लिए वहां विश्राम करने लगी।

विश्राम के बाद मां के भक्त रहसू ने राजा से निवेदन किया कि राजा मान जाओं अभी भी वक्त है जिस पर राजा ने और भी जिद्द ठान ली। अन्ततः कटया कोट में बैठें रहसू का मस्तिष्क फाड़कर देवी ने कंगन युक्त अपने हथेली का दर्शन कराया था किंतु इस घटना के बाद भक्त तो देवी में समाहित हो गए और मदनपाल सिंह का साम्राज्य तथा कुटुंब परिवार नष्ट हो गया।

विश्राम करने के कारण खन्हवार मंदिर के गर्भ गृह में भगवती की लेटी हुई मुद्रा में विशाल पिंड स्थापित है जिसकी आम जन श्रद्धा पूर्वक पूजा-अर्चन करते है। कभी विरान रहा यह स्थान सरकारी अनुग्रह से आज भी वंचित है वही ग्राम प्रधान शारदा चैहान के नेतृत्व में ग्रामवासियों नीत नये-नये कार्य कर रहे है।  जिस कारण यह स्थान का काफी विकसित होने लगा है। मंदिर के पुजारी पं. जनार्दन पांडेय एवं उनके पुत्र मुन्ना पांडेय मंदिर के देखरेख में मनोयोग से लगे हुए है।

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