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भाग गया मैत्रय अपनी परियोजना के साथ कुशीनगर से



  • अगर यह पूरा होती तो विश्व की सबसे बड़ी  होती यह परियोजना
  • शासन-प्रशासन भी इसकी भरपाई करने में लगा


कुशीनगर । उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में बौद्ध स्थली पर पूरा होने वाला मैत्रय परियोजना के संकट के बादल छट आये है। ऐसा प्रतीत हुआ है कि इस परियोजना को पूरा करने वाले ट्रस्टी मैदान छोड़ भाग गये।

इस बावत कुशीनगर में शनिवार को पर्यटन सचिव व महानिदेशक की उपस्थिति में मण्डायुक्त द्वारा किसानों को आश्वासन देना कि यदि ट्रस्ट मैत्रय परियोजना को पूरा करते है तो सरकार पूरा करेगी। उन्होंने यहां तक कहा कि आप इस परियोजना को भूल जायें सरकार यहां पर्यटन से सम्बंधित अन्य कई विकास के काम करेगी लेकिन उसके लिए भी जमीन की जरूरत है। यह अपने आप में ट्रस्ट के भागने का संकेत है।

ज्ञातव्य हो  भगवान बुद्ध की 500 फुट ऊंची प्रतिमा के स्थापना से जुडी बहुचर्चित मैत्रेय परियोजना की बौद्ध अनुयायियो ने भगवान मैत्रय को उपहार स्वरूप देने वाले इस इस परियोजना को कुशीनगर में स्थापित करने की योजना बनायी थी क्योकि बौद्ध धर्म ग्रन्थों के अनुसार भगवान बुद्ध को कुशीनगर अति प्रिय है।

जिसको लेकर वर्ष 2001 में मैत्रेय परियोजना के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के साथ मैत्रेय ट्रस्ट ने समझौता किया था। इसके तहत जमीन मिलते ही परियोजना के निर्माण का कार्य शुरू होने की बात कही गई थी। वर्ष 2003 में कुशीनगर से सटे अनिरुद्धवां, सबयां, कसया आंशिक, विशुनपुर विंदवलिया, सिसवां आदि सात गांवों की आठ सौ एकड़ जमीन के अधिग्रहण की अधिसूचना जारी हुई थी। इसके बाद प्रभावित किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया था। भूमि बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष गोवर्धन प्रसाद गोड़ के नेतृत्व में किसान लगातार इसका विरोध करते रहे हैं। 

बताते चलें कि मैत्रेय ट्रस्ट जिसे बीते 13 वर्षो से कुशीनगर में लगाये जाने की र्चचा शासन- प्रशासन द्वारा किया जा रहा है जिसमें आज तक भूमि अधिग्रहण व उस पर कब्जा तक शासन प्रशासन नहीं ले सका है और बीते वर्ष के नवम्बर माह में मैत्रेय ट्रस्टी अपने फेसबुक पर यह स्पष्ट संदेश दे चुके हैं कि वे इस परियोजना को बोधगया ले जा रहे हैं लेकिन इसके बावजूद शासन प्रशासन न जाने क्यों बार-बार यह सफाई दे रहा है कि यह परियोजना यहां छोटे ही आकार में सही लगायी जाय।

शायद शासन प्रशासन को यह मालुम है कि यह योजना जमीन पर उतरने वाली नहीं है इसलिए जितने सस्ते में हो सके और जैसे भी हो सके जमीन अधिग्रहित कर ली जाय और बाद में उसे पर्यटन विकास के नाम पर किसी अन्य रूप में प्रयोग किया जाय।

अब तो किसानों को इस बात की आशंका है कि यह ट्रस्ट भाग गया है।  मैत्रेय ट्रस्ट विश्वसनीय संस्था नहीं है जिसके कारण किसानों द्वारा दाखिल चार याचिकाओं में किसी में भी शासन प्रशासन को अपना जबाब दाखिल करना उचित नही लगा है। 

याचियों के अधिवक्ता अवधेश प्रकाश ने बताया कि अब तक किसी भी विपक्षी का कोई काउण्टर दाखिल नहीं हुआ है। अप्रैल 13 में यह सुनवाई के लिए सूचिवद्ध हुआ था तब से यह आज तक सुनवाई के लिए नियत नहीं हुआ है। पर्यटन सचिव ने शनिवार को यहां तक कह दिया कि वह दूसरे चरण की भूमि नहीं लेंगे।

यद्यपि शासन प्रशासन क्षरा मैत्रय ट्रस्ट से परियोजना के बारे प्रारूप के खर्चे का लेखा जोखा पीछले 6 माह से मांग रहा है पर ट्रस्ट इसे उपलब्ध नही करा सका है और नही गारन्टी दे सका है। 

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