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गुणात्मक परिवर्तन के लिए नीतियों में परिवर्तन जरूरी- भारतीय कुलपति संघ



कुशीनगर । भगवान बुद्ध की परिनिवार्ण स्थली कुशीनगर आये देश के जाने माने कुलपतियों ने उच्च शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन के लिए नीतियों में परिवर्तन करने पर विशेष जोर दिया।अधिवेशन में उन्होने देश की कृर्षि का भी मुद्दा उठाया । कुलपतियों के सदन में घण्टों विज्ञान और तकनीकी में कृषि को भी शामिल करने व कृर्षि परक शोध को प्रश्रय देने की बात कही गयी।

कुलपतियो ने माना कि कृर्षि पर ज्यादा शोध होंगे तो इससे जहां किसान की स्थिति में सुधार होगा वहीं देश की अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ होगी। कुलपतियों का दल भारतीय विश्वविद्यालय संघ के 87वें वार्षिक अधिवेशन के दूसरे दिन कुशीनगर के एक होटल में आयोजित तीन तकनीकी सत्रों में कुलपतियों के विचार विमर्श कर रहा था। 

पूरे मंथन के बाद कुलपतियों ने माना कि देश की अर्थव्यवस्था और औद्योगिक विकास का आधारभूत तत्व कृषि है। इसका सीधा असर आम आदमी पर पड़ता है। कुलपतियों ने कृषि, तकनीक, उद्योग धंधे और विज्ञान को प्रकृति का विकास रूपी उपहार बताते हुए कहा कि सरकार की गलत नीतियों के कारण अनुसंधान के क्षेत्र में संतुलन नहीं बन रहा है। इससे वास्तविक विकास अवरुद्ध हो रहा है। कुलपति इस बात पर भी सहमत दिखे कि देश के नीति निर्धारकों की योग्यता भी निर्धारित होनी चाहिए।

उच्च शिक्षण संस्थानों में होने वाले अनुसंधान के लिए स्थायी मानक बनाने और उसकी समुचित निगरानी की व्यवस्था करने पर भी कुलपतियों ने सहमति नजर आयी । उनका कहना था कि अच्छे अध्यापकों को अनुसंधान का अवसर नहीं मिल रहा है। रचनात्मकता और बुद्धिमत्ता को अलग-अलग विषय मानते हुए कुलपतियों ने रचनात्मकता पर बुद्धिमत्ता को तरजीह देने को अनुचित करार दिया। रचनात्मकता को सर्वोपरि मानते हुए शोध के लिए रचनात्मक सोच वाले लोगों को तरजीह दी जाए।

द्वितीय सत्र में कुलपतियों ने उच्च शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में संतुलन बिठाने पर जोर दिया। कहा कि विज्ञान और तकनीक में हम उन्नति कर रहे हैं पर उसे समाज के लिए उपयोगी बनाने की दिशा में ठीक से काम नहीं हो रहा है।

कुलपति इस प्रस्ताव पर सहमत दिखे कि तकनीक को समाज उन्मुख बनाने की सोच के साथ नीति निर्धारकों के लिए योग्यता का निर्धारण किया जाए और उनकी जवाबदेही भी तय हो। इसके बगैर उच्च शिक्षा को समावेशी बनाने की बात बेमानी होगी।

तीसरे सत्र में शोध परियोजनाओं के क्रियान्वयन से जुड़े प्रक्रियागत गतिरोधों को जल्द से जल्द दूर करने पर जोर दिया गया। कुलपतियों का मानना था कि प्रक्रियागत गतिरोध दूर होने पर ही समन्वित विकास का सपना साकार होगा। 

पैनल डिस्कसन में रुहेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुजम्मिल, फकीर मोहन विश्वविद्यालय के कुलपति डा. कुमार दास, आगरा विश्वविद्यालय के प्रो. डीएन जौहर, उड़ीसा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संघमित्र मोहेला, हिमाचल विश्वविद्यालय के कुलपति डीएन वाजपेयी, केंद्रीय विश्वविद्यालय उड़ीसा के कुलपति प्रो. सुरभि बनर्जी और उत्तराखंड विश्वविद्यालय दुर्ग सिंह चैहान ने विचार व्यक्त किए। 

अंत में केन्द्र व प्रदेश सरकारों एवं यूजीसी को इस अधिवेशन के दौरान भेजे जाने वाले सुझावों के लिए एक समिति कुलपति संघ के अध्यक्ष प्रो. एस.एन. पूरी की अध्यक्षता में बनायी गयी जिसका संयोजन गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पी.सी. त्रिवेदी ने किया। यहां 12 सुझाव तैयार किये गये जिसमें शिक्षक-छात्र अनुपात, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, उच्च शिक्षा की नीति बनाये जाने में इस क्षेत्र से जुड़े विद्वानों को जोड़ा जाना सहित अन्य थे। इस दौरान कुल देश-विदेश के 80 से अधिक कुलपति मौजूद रहे।

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