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150 वर्ष पूर्व स्थापित अद्भूत और चमत्कारी है यह शनि मंदिर



पूरी होती है शनिदेव के दरबार में हर मनोकामनाएं 
पूर्वजो की परम्परा को आगें बढ़ा रहे मंदिर के पुजारी कन्हैया शर्मा

अजय आचार्य
टाईम्स आफ कुशीनगर व्यूरों
कुशीनगर । पूर्वांचल के पूर्वी-उत्तरी छोर पर नरायणी नदी के किनारे बसे कुशीनगर जिले में एक ऐसा शनि मन्दिर है, जिसके दर्शन मात्र से ही सारे कष्ट दूर हो जाते है। भगवान शिव के शिष्य और सूर्य के द्वितीय पुत्र शानिदेव की कृपा मात्र से ही न सिर्फ सारे कष्टों का अंत हो जाता है। बल्कि सुख के सारे द्वार भी खुल जाते है।
जिले के पडरौना नगर के विवाह भवन रोड स्थित इस शनि मन्दिर से कोई याचक निराश नही जाता है। करीब डेढ़ सौ साल पूराने इस मन्दिर में विराजमान शनिदेव की महिमा और चमत्कार के किस्से दुर-दुर तक फैले हुए है। यही कारण है कि इस प्राचीन मंदिर पर भक्तों का तांता हमेशा लगा रहता है। बताया जाता है कि सच्चे मन से मांगी गयी हर मुरादे यहां पूरी होती है।
ज्ञातव्य है कि भगवान शानिदेव के इस मन्दिर की स्थापना डेढ सौ वर्ष पूर्व स्वर्गीय जानकी प्रसाद ने एक छोटे से मंदिर के रूप की थी। बुढ़वा बाबा के नाम से प्रचलित जानकी दास शनिदेव की पूजा-अर्चना करते थे। इनके निधन के बाद राम निरंजनदास उत्तराधिकारी के रूप में वर्षो मंदिर की सेवा में लगे रहे, इनके मृत्युपरान्त पशुपतिनाथ शर्मा काफी दिनों शनिदेव के कृपापात्र बने रहे। इसके बाद कन्हैया शर्मा अपने पूर्वजों के परम्परा को आगें बढ़ा रहे है। ज्योतिगी ब्राहम्ण परिवार में जन्में मंदिर के पुजारी कन्हैया शर्मा कहते है कि शनिदेव के बारे में आम तौर पर भ्रांतिया व गलत धारणाएं फैली हुयी हंै। अधिकांश लोग शनिदेव को क्रूर, क्रोधी व कष्टदायक समझते है। शनि की साढ़ेसाती, शनि की ढैया, शनि की प्रतिकूल महादशा व अंतर्रदशा पीड़ा और संकट से घिर जाने के बाद शनिदेव की शरण में जाते है। जबकि शास्त्रों के अनुसार शनिदेव धर्माधिकारी है जो हमेशा कर्मो के अधार पर फल देते है। 
अनवरत बीस वर्षो से भगवान शानिदेव की पूजा अर्चना कर रहे कन्हैया शर्मा बताते है रख-रखाव के अभाव में यह मंदिर जीर्णधीर अवस्था में था। बीते कुछ वर्ष पूर्व शनिदेव ने उन्हंे सपने में मंदिर की जीर्णोद्वार कराने का निर्देश दिया तो वह सोच में पड़ गए कि यह सब कैसे होगा। अर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नही है कि अपने दम पर मंदिर का जीर्णोद्वार कर संकू। पुजारी श्री शर्मा ने बताया कि दुसरे दिन मंदिर के जीर्णोद्वार की बात वह अपने पडोसी से किए और शनिदेव द्वारा सपने में दिए गए निर्देश से अवगत कराया। फिर क्या पड़ोसी गोपाल शर्मा, कन्हैया शर्मा को अपने साथ लेकर शहर के सभ्रान्त और समाजसेवी लोगो से मिले और देखते ही देखते शनिदेव’ का अद्भूत और मनोहारी मंदिर का निर्माण हो गया। शनिदेव के मंदिर में संकट मोचन हनुमानजी जी भी विराजमान है।
मन्दिर में विराजमान शनिदेव की इस प्रतिमा की लम्बाई करीब दो फीट है। जिसे करीब डेढ़ सौ बर्ष पूर्व गोमेद पत्थर से बनाया गया था। मंदिर के पुजारी कन्हैया जी कहते है कि पहले वह हमेशा परेशान रहते थे। किसी काम को करने में मन नही लगता था आर्थिक तंगी के कारण वह मानसिक रूप से भी हमेशा उलझे रहते थे किन्तु जब से शनिदेव की शरण में गए सारे कष्ट दुर हो गए।
उन्होने बताया कि शनिदेव की कृपा से ही वह अपने पूर्वजों की परम्परा को आगे बढ़ा रहे है। बताया जाता है कि शनिदेव का दान सिर्फ ज्योतिगी ब्राहम्ण ही ग्रहण करते है। राजस्थान में ज्योतिगी ब्राम्हण की संख्या सर्वाधिक है जबकि अन्य शहर में इनकी संख्या सीमित है। मण्डल के गिने-चुने शनि मंदिर में सबसे प्राचीन मंदिरों में शुमार शनिदेव के इस मंदिर की अपनी अलग महत्ता है मंदिर की महिमा अपने आप में निराली है। शनिदेव के भक्तों का मानना है कि सच्चे मन से की गयी प्रार्थना को शनिदेव बहुत जल्द ही स्वीकार करते है और अपने भक्त को मनवाछित फल देते है। कहा तो यह भी जाता है कोई भी व्यक्ति इनके दरबार निराश नही लौटता है।
पैराणिक रूप में ऐसी मान्यता है कि देवाधि देव महादेव की तरह शनिदेव भी दयालु और कृपालु है। नवग्रहो में शनिदेव का विशेष महत्व है जो मानव जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। शनि की उत्पत्ति के विषय में शास्त्रों में कहा गया है कि सूर्य की पत्नी छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ, शनि के श्यामवर्ण को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी छायापर आरोप लगाया कि शनि मेरा पुत्र नही है। तभी से शनि अपने पिता सूर्य से शत्रुभाव रखते है। शनि ने अपने तप और साधना के बल पर भगवान शिव को प्रसन्न कर अपने जीवन के सार्थक उद्देश्य के लिए प्रार्थना की, तो भगवान आशुतोष ने शनिदेव को नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर बने रहने का वरदान दिया। 

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