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.................यू हीं नही पडा कुशीनगर का नाम

  •   बदसुरत कुश से ही बना कुशीनगर
कुशीनगर । भगवान बुद्ध के कुशीनगर को लेकर वहां कई तरह की कहानियां प्रचलित है। उसी में एक यह भी कहानी है कि जिसमें यहां के मल्लदेश के राजा की कोई संतान नहीं थी। इन्द्र ने एक बार उनकी पटरानी शीलवती पर प्रसन्न होकर दो बेटों का वर दिया।
पहला बेटा बहुत ही कुरुप था। जिस कारण उसे कुश नाम से जाना जाता था। लेकिन सर्व विद्याओं का ज्ञाता था। दूसरा बेटा बहुत ही खूबसूरत के साथ लेकिन बिल्कुल बुद्धिहीन था।
कुश एक तेज बुद्धि का इंसान था। उसे पता था कि उसकी बदसूरती को देख कोई भी लड़की उससे शादी करना नहीं पसन्द करेगी लेकिन शीलवती के जोर देने से कुश ने शादी करना स्वीकार किया। जिसपर कुश की मां ने किसी तरह से उसका विवाह सागल देश की राजकुमारी से करवाया। राजकुमारी प्रभावती बहुत ही सुन्दर थी।
कुश के असल रुप को छुपाने के लिए शीलवती ने राजकुमारी प्रभावती से झूठ कहा कि उसकी पारिवारिक परम्परा के मुताबिक प्रभावती और कुश एक दूसरे को तब तक रोशनी में नहीं देखेंगे जब तक उनका बच्चा गर्भस्थ नहीं हो जाता अन्यथा अनिष्ट हो जायेगा।
लेकिन दुसरी तरफ कुश के मन में प्रभावती को देखने की प्रबल इच्छा जागृति हो रही थी उसने अपने मन की बात अपनी माता को बताया। माता ने उसे घोड़ों के अस्तबल में प्रभावती को दिखाने की योजना बनाई। अस्तबल में बैठे एक सारथी के भेष में कुश ने प्रभावती को देखा। तभी से वह प्रभावती के हुस्न का दिवाना हो गया।
उसकी चाहत रही की वह बार-बार उसे देखता रहे जिसको लेकर कुश ने दो-तीन बार अपनी माता की सहायता से प्रभावती को देखा और जितना ही वह उसे देखता उतना ही उसे और देखना चाहता। अतः एक बार माता ने प्रभावती को कमल के जलाशय में भेजा, जहां कुश छुपा बैठा था।
जब जलाशय में प्रभावती नहाने लगी तो कुश का धैर्य छूट गया। वह तैरता हुआ प्रभावती के पास पहुचा और उसका हाथ पकड़ कर सारा भेद खोल दिया कि वही उसका पति है। इधर उस कुरुप को देख प्रभावती बेहोश हो गयी और डूबने लगी जिसे पुनः कुश ने जलाशय से बाहर निकाला जब उसे होश आया तो वह रूष्ट अपने मायके चली आयी।
इधर कुश भी उसके पीछे-पीछे उसे मनाने के लिए चल दिया। कुरूप होने के कारण उसे कोई पहचान नही सका गया और उसने सागल देश में कई प्रकार की नौकरियां की। जब वह टोकरी बनाने का काम करता तो प्रभावती को अपना प्रेम-संदेश टोकरी की कलात्मकता के साथ भेजता।
कभी कुम्हार बनता तो अपने हाथों की कलात्मकता से अपना संदेश भेजता। फिर भी प्रभावती उससे घृणा करती रही। अंततः उसने प्रभावती के घर में रसोईये की नौकरी की और अपने हुनर से हर कोई का दिल जीत लिया। फिर भी प्रभावती उससे घृणा करती रही।
एक दिन आठ देशों के राजाओं ने मिलकर सागल पर चढ़ाई की। तब कुश ने अपने ससुर के सामने प्रकट होकर सागल को बचाने का प्रस्ताव रखा। अपने जमाई राजा को वहां देख के राजा आश्चर्य-चकित हुए। जब कुश को राजकुमारी के प्रेम में हर प्रकार का संघर्ष करते देखा तो उससे वह बहुत प्रभावित हुआ। प्रभावती को बुलाकर राजा ने कुश की प्रशंसा की। तब प्रभावती ने संकट की घड़ी में कुश द्वारा साथ देने पर उसे अपना लिया।
कुश के साथ फिर आठ राजाओं की लड़ाई हुई। कुश ने उन आठ राजाओं को पराजित कर दिया। उसके बाद प्रभावती की आठ छोटी बहनों का ब्याह करवा दिया। फिर खुशी-खुशी प्रभावती के साथ मल्लदेश यानी कुशीनगर को लौट गया। तभी से इस मल्लदेश का नाम उसी पराक्रमी राजा कुश के नाम पर पड़ गया जिसे आज पूरा विश्व कुशीनगर के नाम से जाना जाने लगा।





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