शुक्रवार, 28 मार्च 2014

रेल के इन्तजार में बुढ़ी हो गयी आखें


टाईम्स आफ कुशीनगर ब्यूरो।
कुशीनगर। भारत ही नही विश्व के पटल पर ख्याति प्राप्त भगवान बुद्ध की परिनिवार्ण स्थली कुशीनगर पांच दशक से रेल का इंतजार कर रही है। जिस कारण यहां आने वाले सैलानियों की रफ्तार मे इजाफा न हो सका। आश्चय की बात तो यह कि तीन-तीन मंत्रियों में इस गढ़ म इसे किसी ने मुद्दा तक नही बनाया।

स्थति ऐसी है कि बौद्ध सर्किट के अन्य स्थलों की अपेक्षा यहां पर्यटक आने में रूचि नही लेते। संदन के प्रश्न प्रहर में कई बार इसके लिए जवाब सवाल किये गये पर इत्फाक रहा कि इससे कोई विशेष असर नही दिखा। सही माईने में तो रेल की पटरी को लेकर यहां सियासत तो हुयी ही नही। कईयों कि आंखे घुघली हो चली । रेल लाईन का सपना संजोये लोग अब उदास है। क्या पता कब आयेगी और इसे कौन चलवायेगा ? इन सब सवालों के जबाब के जबाब में पांच दशक हो गये ओर सवाल वही इन्तजार कर रहे है।

ज्ञातव्य हो कि भगवान बुद्ध के परिनिवार्ण स्थली के रूप में प्रसिद्ध यह तीर्थ स्थल 1876 की खुदाई में प्रकाश में आया। यहां भगवान बुद्ध के परिनिवार्ण प्राप्त करने के कारण बौद्ध अनुयाईयों के लिए प्रमुख धार्मिक स्थली है। ऐसा माना जाता है कि यहां तक पहुंचने के बाद ही बौद्धों की धार्मिक यात्रा पूरी होती है।
इस स्थल को पर्यटन के उद्देश्य विकसित करने के लिए रेल लाइन से जोड़ने की बात उठी। लोग बार-बार मांग करते रहे लेकिन कभी जनप्रतिनिधियों ने इसको लेकर वह संजीदगी नहीं दिखाई जो इस महत्वपूर्ण स्थल को लेकर होनी चाहिए थी।

पिछले लगभग एक दशक में तीन बार रेल बजट सत्र में कुशीनगर को रेल लाइन से जोड़ने के लिए सर्वे की बात कही गई। इसका प्रस्ताव भी पारित हुआ लेकिन सर्वे नहीं हो सका। जिसका परिणाम हुआ कि पर्यटन में विकास की संभावनाओं को बल नहीं मिल सका। हर बार क्षेत्र के लोगों के साथ महापरिनिर्वाण स्थली भी निराश ही प्राप्त हुयी। जिसका परिणाम है कि यहां आने वाले देशी-विदेशी सैलानियों की संख्या अन्य बौद्ध स्थलों से कम है।

बौद्ध भिक्षु भंते महेंद्र, बिरला धर्मशाला के प्रबंधक विरेंद्र कुमार तिवारी, होटल व्यवसायी मस्तराज सिंह आदि कहते हैं कि रेल की पटरी यहां तक दौड़ जाए तो पर्यटकों की संख्या में इजाफा हो जाएगा। पर्यटन व्यवसाय और मजबूत होगा। यही नही स्थानीय स्तर पर रोजगार के सृजन के अपार सम्भावना है। अफशोस है कि आज तक कभी किसी ने इसको लेकर आवाज बुलंद नहीं की। यही वजह है कि बुद्ध स्थली रेल को तरस रही है। इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि जिस कुशीनगर के नाम पर कुशीनगर एक्सप्रेस चलती है, वह कुशीनगर ही नहीं पहुंचती। उसके लिए कई घटों का सफर करना पड़ता है।

इस सम्बन्ध में उप निदेशक पर्यटन पीके सिंह ने बताते है कि कुशीनगर मे आने वाले पर्यटकों की संख्या कम है। यह सही है कि रेल सेवा से जुड़ने के बाद पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी तो पर्यटन व्यवसाय और मजबूत होगा। इसके लिए विभाग द्वारा पत्र भी लिखा गया है।

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